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एकादशी तिथि वैष्णव तिथि मान्य है. यह भगवान विष्णु का व्रत पूजा-आराधना की सबसे महत्वपूर्ण तिथि है. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं. जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 भी हो जाती है. विजया एकादशी अपने नामानुसार विजय प्रदान करने वाली तिथि मानी गई है. मान्यता है कि विजया एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है. फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. पंचांग के अनुसार, इस बार 6 मार्च को विजया एकादशी मनाई जाएगी.

व्रत का शुभ मुहूर्त – 
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण की एकादशी तिथि 23 फरवरी को दोपहर 1:55 बजे से प्रारंभ होकर 24 फरवरी को रात 1:44 बजे तक रहेगी. सनातन धर्म में उदया तिथि को महत्व दिया जाता है इसलिए विजया एकादशी का व्रत 24 फरवरी को रखा जाएगा. इस व्रत का पारण 25 फरवरी मंगलवार को होगा.

विजया एकादशी कथा –

अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से एकादशी का महात्म्य सुना था. सारी एकादशी की कथा कृष्ण ने ही कही है. जया एकादशी के माहात्म्य को सुन लेने के बाद अर्जुन ने पूछा ” माधव फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महात्मय है आपसे मैं जानना चाहता हूं अत: कृपा करके इसके विषय में जो कथा है वह सुनाएं.” अर्जुन द्वारा प्रश्न किये जाने पर श्री कृष्ण ने कहा-, “प्रिय अर्जुन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है”. इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है. हे अर्जुन तुम मेरे प्रिय सखा हो अत: मैं इस व्रत की कथा तुमसे कह रहा हूं. आज तक इस व्रत की कथा मैंने किसी को नहीं सुनाई. तुमसे पूर्व केवल देवर्षि नारद ही इस कथा को ब्रह्मा जी से सुन पाए हैं. अब तुम ध्यान से मुझसे यह कथा सुनो.

त्रेतायुग की बात है श्री रामचन्द्र जी जो विष्णु के अंशावतार थे अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए सागर तट पर पहुंचे. सागर तट पर भगवान का परम भक्त जटायु नामक पक्षी रहता था. उस पक्षी ने बताया कि सीता माता को सागर पार लंका नगरी का राजा रावण ले गया है और माता इस समय आशोक वाटिका में हैं. जटायु द्वारा सीता का पता जानकर श्रीराम चन्द्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे परंतु सागर के जल जीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना प्रश्न बनकर खड़ा था.

भगवान श्री राम को सागर पार जाने का कोई मार्ग नहीं मिल रहा था तब वे परम ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि से इसका हल पूछने गये. भगवान श्रीराम लक्ष्मण समेत वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न उनके सामने रख दिया. मुनिवर ने कहा हे राम आप अपनी सेना समेत फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखें, इस एकादशी के व्रत से आप निश्चित ही समुद्र को पार कर रावण को पराजित कर देंगे. श्री रामचन्द्र जी ने तब उक्त तिथि के आने पर अपनी सेना समेत मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और सागर पर पुल का निर्माण कर लंका पर चढ़ाई की. राम और रावण का युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया.