
ढुंढिराज पन्द्रहवी शताब्दी के भारतीय ज्योतिष के प्रमुख ज्योतिषी थे. उनके ग्रन्थ जातकाभरण की ख्याति उनके समय में बहुत रही होगी और अब भी है. उनके ग्रन्थ से लगता है कि वे गणेश के उपासक थे. ढुंढिराज ने गणेश की बंदना की है और यह भी लिखा है कि जन्मपत्री बनाते समय मंगल लिखना चाहिए. उन्होंने कई मंगल श्लोक प्रारम्भ में लिखा है. पंद्रहवी शताब्दी में फलित के ग्रन्थ तो बहुत थे लेकिन ऐसे ग्रन्थ बहुत कम थे जिसमे जन्मपत्री बनाने के लिए आवश्यक सभी चीजें मौजूद हों. ढुंढिराज की यह क्लासिक इस मामले एक बेहतरीन किताब है जिसमें सम्वत्सर, अयन, ऋतु, मास, दिन , पक्ष, ग्रहयुति, दृष्टि फल, राशि फल, नक्षत्र फल इत्यादि समग्रता से प्राप्त होते हैं.
पुजारियों में यह ग्रन्थ काफी प्रसिद्ध रहा होगा जिस कारण पुराण में इनके जन्म का अवतारी प्रसंग पुराण लेखकों ने लिख डाला. ढुंढिराज का रचनाकाल शक सं 1447 के लगभग माना जाता है. ये गोदवरी के तट के पास किसी पार्थनगर के निवासी थे. इनकी प्रमुख रचनायें अनुंबसुधारस की सुधारस-चषक-टीका, ग्रहलाघवोदाहरण, ग्रहफलोपपत्ति; पंचांगफल, कुंडकल्पलता हैं जिसमे प्रसिद्ध फलितग्रंथ जातकाभरण भी शामिल है.
पुजारी पंडे गपोड़शंखी होते हैं और अज्ञानता फैलाते हैं. पुराण मूलभूत रूप से अज्ञानता फ़ैलाने का उद्योग था जिसका प्रयोजन जनता को कूपमंडूक बना कर उन पर शासन करना था. ढुंढिराज के जन्म प्रसंग को यदि पढ़े तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि पौराणिकों ने अन्य राजाओं और रानियों को किस प्रकार से अवतार बनाया होगा. ढुंढिराज के जन्म की पौराणिक कथा दो पन्ने में दी जा रही है –


ढुंढिराज के जन्म की कथा गणेश जी के जन्म से जोड़ दी गई है और बताया गया है कि गणेश ने स्कन्ध निकाल कर काशी के ज्योतिषी के यहाँ जन्म लिया. यह सिर्फ इसलिए कि ढुंढिराज ने गणेश वन्दना की है और गणेश के तीन श्लोक लिखे हैं एक मंगलाचरण में और दो मंगल श्लोक जन्मपत्री के सन्दर्भ में लिखे हैं. स्कन्ध इसलिए लिखा क्योकि ज्योतिष के तीन स्कन्ध होते हैं. काशी में एक ढुंढिराज गणेश मन्दिर भी है जो काफी पुराना है.