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किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को पदमुक्त करने की घोषणा के बाद अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास ने किन्नर अखाड़े ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए पूर्व अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से हटा दिया है. किन्नर नारायण त्रिपाठी को भी उनके पद से हटाकर अखाड़े से भी निष्कासित कर दिया गया है.

आपको बता दें कि ममता कुलकर्णी को प्रयागराज महाकुंभ में आननफानन में राजनीतिक उद्देश्यों के तहत संन्यास दिलवा कर महामंडलेश्वर पद पर अभिषिक्त कर दिया गया था. इस बावत उसका जीवित में ही बिना सन्यास के ही पिंडदान करवा दिया गया था. ममता कुलकर्णी गलत लोगो के साथ थी और राजनीतिक मुहीम के तहत यह किया गया था. इसका इहलोक और परलोक दोनों ही नष्ट हो गया है. भगवद्गीता में कहा गया है जो धर्म अशास्त्रविहित होता है उससे इहलोक और परलोक दोनों नष्ट हो जाता है. अखाड़ा संस्थापक के आक्षेपों में प्रमुख आक्षेप यह है कि सनातन धर्म और देश हित को दरकिनार करके देशद्रोह जैसे मामले में लिप्त ममता कुलकर्णी का अखाड़े की परंपरा का अनुपालन किए बगैर सीधे महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक कर दिया गया था. वास्तव यह ड्रगिस्ट जो कभी अंडरवर्ल्ड की रखैल थी सन्यास योग्य भी नहीं है. किन्नर लक्ष्मी पर यह आक्षेप भी है कि उसने बिना किसी सहमति के जूना अखाड़े के साथ अनुबंध किया था, जो अनैतिक और असंवैधानिक है.


तीसरा आक्षेप ज्यादा महत्वपूर्ण है अखाड़ा परम्परा के बावत. कोई भी महामंडलेश्वर यूँ ही नहीं बन सकता है और दशनामी सन्यासियों की “सरस्वती” “गिरी” इत्यादि टाईटिल नहीं लिख सकता है. अखाड़े का महामंडलेश्वर अखाड़ा का प्रमुख नेता और गुरु होता है. उसका अभिषेक उसके सन्यास धर्म के अनुपालन, तप, धर्म का अनुपालन और सेवा के लम्बे अनुभव के बाद किया जाता है. ममता कुलकर्णी को डायरेक्ट महामंडलेश्वर की उपाधी दी गई. ममता कुलकर्णी को पहले वैराग्य की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए था. उन्हें सन्यासी बनना चाहिए था तथा सन्यास धर्म पर चलना चाहिए था. संन्यास बिना मुंडन संस्कार के नहीं होता. ममता कुलकर्णी न तो संन्यासी थीं और न ही उनका मुंडन संस्कार हुआ था. संस्थापक का परम्परा के अनुसार ममता कुलकर्णी को हटाना एकदम उचित निर्णय है.