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मध्य प्रदेश के उज्जैन में हरसिद्धि मंदिर है जो माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है. पुराणों के अनुसार जहां यह मंदिर स्थित है, वहां माता सती की कोहनी गिरी थी . देवी का दर्शन करने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है. ऐसी किम्वदन्ती है कि यहां राजा विक्रमादित्य अमावस की रात को विशेष अनुष्ठान करते थे और देवी को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर चढ़ाते थे. रावण की तरह हर बार उनका सिर जुड़ जाता था. स्कन्दपुराण में उनकी उत्पत्ति का एक अन्य वर्णन मिलता है जिसके अनुसार चंड और प्रचंड के वध के लिए शिव ने इनका आह्वान किया था. वध करने के बाद शिव ने कहा था “हे देवी ! तुमने इन दुष्ट दानवों का वध किया है अतः समस्त लोक में तुम्हारा ‘हरसिद्धि” नाम प्रसिद्ध होगा.
उज्जयिनयां कर्पूरं च मांगल्यकपिलाम्बरं:।
भैरव: सिद्धिद: साक्षाद देवी मंगलचंडिका ।।

सती के अंग जिन 52 स्थानों पर अंग गिरे थे, वे स्थान शक्तिपीठ में बदल गए और उन स्थानों पर आराधना का विशेष महत्व है. हर शक्तिपीठ में देवी के साथ शिव विराजमान हैं जिनके नाम अलग अलग हैं. हरसिद्धि मन्दिर में देवी का नाम मंगलचण्डिका है और भैरव का नाम कपिलाम्बर है. यहाँ सदैव अखंडज्योति जलती रहती है. देवी के दायें और बाएं महाकाली और महासरस्वती विराजमान हैं. मध्य में श्रीयंत्र है जिस पर देवी विग्रह विराजमान है. श्रीयंत्र से स्पष्ट है कि यह एक तांत्रिक मन्दिर है. देवी की सिंदूर पूजा की जाती है. यहाँ की आरती बड़ी मोहक होती है. मन्दिर की और भी कई विशेषताएं हैं, लेकिन एक खास बात जो लोगों के आकर्षण का केंद्र है, वो है मंदिर प्रांगण में स्थापित 2 दीप स्तंभ. ये दीप स्तंभ लगभग 51 फीट ऊंचे हैं और नवरात्रि में 9 दिन ये प्रकाश स्तम्भ जगमाते हैं.
मंदिर में दायीं तरफ महाराज विक्रमादित्य की राजसभा के नवरत्नों के चित्र लगे हुए हैं. ये नवरत्न हैं -धन्वन्तरी, क्षपणक, अमरसिंह , शंकु, बेताल भट्ट, घटकर्पर, कालीदास, वररूचि और ज्योतिष के महान आचार्य वराहमिहिर. मन्दिर के सभामंडप में नौदेवियों की भी मूर्तियाँ अंकित हैं. यहाँ प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी अपनी मनोकामनाओं के लिए आते हैं. यहाँ देवी को की गई प्रार्थना आवश्य स्वीकार होती है.