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प्रयाग कुम्भ हो या सिंघस्थ कुम्भ हो या कोई भी कुम्भ हो उसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है. यह पौराणिक उत्पत्ति है और मूलभूत रूप से ज्योतिषीय सन्दर्भ रखता है. महाकुम्भ बृहस्पति के परिभ्रमण पर आधारित है. बृहस्पति प्राचीन काल से एक शुभ ग्रह माना जाता है. उसका गोचर, इसका उदय और अस्त होना, इसका वक्री होना धर्म कर्म के लिए महत्वपूर्ण रहा है. सभी धर्म-कर्म और सांसारिक कर्म वक्री और अस्त बृहस्पति के समय में स्थगित कर दिए जाते हैं. यह प्रमुख रूप से याज्ञिक कर्मकांड के बाबत विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा है.

बृहस्पति भचक्र या राशिचक्र का एक चक्कर 12 वर्ष में लगाता है. बृहस्पति एक राशि में एक वर्ष रहता है जिसके आधार पर सम्वत्सर होता है. सम्वत्सर 60 होते हैं जिसमे 5-5 वर्ष के बारह चक्र होते हैं. एक 5 वर्षीय चक्र को युग कहा जाता है. पंचवत्सरमय युगाध्यक्ष प्रजापति माने गये हैं. वैदिक काल में ऋषियों ने श्रौत्र-स्मार्त कर्म के लिए समय चक्र को बृहस्पति केन्द्रित माना था और 12 वर्षीय सम्वत्सर चक्र के पांच चक्र से ही नये युग ( युगस्य पंचमस्येह काल ज्ञान निबोध-भट्टोत्पल बृहदसंहिता टीका) का प्रारम्भ होता था. वेदों में बृहस्पति को सबसे शुभ माना गया है इसलिए बृहस्पति के गोचर को ही ज्योतिष के केंद्र में रखा गया था. पांच वर्ष को ही एक युग कहते थे जिनके नाम संवत्सर, परिवत्सर, इडावत्सर, अनुवत्सर और वत्सर थे. इसका जिक्र ब्राह्मण ग्रन्थों, महाभारत इत्यादि में मिलता है. संवत्सर का यह चक्र आकाश में बृहस्पति और शनि की सापेक्ष स्थिति पर आधारित है. बृहस्पति और शनि की 12 राशियों में भ्रमण की अवधि क्रमशः लगभग 12 और 30 सौर वर्ष है. इन दो कक्षीय अवधियों में से कम से कम सामान्य गुणक 60 सौर वर्ष है. हर साठ साल में, दोनों ग्रह लगभग एक ही नक्षत्र में समान अंशों पर स्थित होते हैं, जहां उन्होंने ६० साल पहले शुरू किया था, इस प्रकार एक साठ साल का चक्र बनता है. एक सम्वत्सर चक्र के पूरा होने पर सृष्टि में महती परिवर्तन देखे जाते हैं. सम्भव है वैदिक ऋषि युगपरिवर्तन को सम्वत्सर चक्र पर ही आधारित देखते होंगे. एक सम्वत्सर ६० वर्ष का होता है जिसमे जिसमे पांच पांच वर्ष के १२ खंड होते हैं12 x 5 = 60 . ब्राहस्पत्य वर्ष (द्वादश राशियों में भ्रमण का एक चक्र ) सौर वर्ष से ४.२३२ दिन कम होता है. बृहस्पति के वर्ष सूर्य से कम होने के कारण युग में भी अंतर है , सूर्य के 43,20,000 वर्ष का एक सौर युग होता है जबकि 43,70,688 ब्राहस्पत्य वर्ष का एक युग होता है. संवत्सर में पांच वर्ष के बारह वर्ष होते है अर्थात एक सम्वत्सर चक्र में ६० वर्ष होते हैं. इन ६० सम्वत्सरों के नाम सभी प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त होते हैं. वैदिक काल में सम्वत्सर चक्र का आरम्भ धनिष्ठा से होता था.

जब बृहस्पति (गुरु) और सूर्य (राजा) बारह साल बाद जब गुरु वृषभ में और सूर्य मकर में होता है तो प्रयाग महाकुम्भ होता है, जब गुरु सिंह में होता है और सूर्य मेष में होता है तो सिंहस्थ कुम्भ होता है, जब गुरु और सूर्य सिंह राशि में होते हैं तब नासिक में कुम्भ लगता है और जब मेष में सूर्य और कुम्भ में बृहस्पति होता है तब हरिद्वार में कुम्भ लगता है. यह सूर्य(राजा) और बृहस्पति( गुरु) के परिभ्रमण पर आधारित है.

यह महा’कुंभ का ज्योतिषीय पहलू है. इसका प्रारम्भ मध्य पौराणिक युग समय में शुरू हुआ था. इसका उद्देश्य था साधु संतों का समागम और धार्मिक विचार विमर्श. इसका आधार समुद्र मंथन है जिसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है, किसी श्रुति में इसका जिक्र नहीं मिलता. महाकुम्भ का वर्णन किसी ग्रन्थ में नहीं मिलता. प्रयाग प्राचीन तीर्थ है यहाँ गंगा स्नान का महात्म्यं प्राचीन काल से है जिसका वर्णन बौध ग्रन्थों में भी मिलता है. ऐसा माना जाता है कि महाकुम्भ का प्रारम्भ आदि शंकराचार्य ने भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू मठों के बीच दार्शनिक चर्चाएँ और बहस के लिए कराया था. आदि शंकराचार्य जैसे अद्वैत वेदांत के गुरु कभी यह उपदेश नहीं कर सकते कि प्रयाग में संतों के महाकुम्भ के दौरान गंगा स्नान से अमृतत्व की प्राप्ति हो जाएगी और मनुष्य सीधे वैकुण्ठ चला जायेगा. आदि शंकराचार्य के सभी भाष्य में हर तरीके के कर्मकांड का खंडन किया गया है यहाँ तक कि महर्षि कपिल प्रणित योग को भी ज्ञान के सन्दर्भ में हेय कहा गया है. योग की अद्वैत ज्ञान में पहुंच नहीं है, यह सिर्फ आदि शंकर ने ही नहीं रामानुजाचार्य ने भी लिखा है. ज्ञान और मुक्ति में किसी भी प्रकार का कर्मकांड हेतु नहीं हो सकता है. उपनिषद में श्रुतियां कहतीं हैं कि 1000 अश्वमेध यज्ञ भी ब्रह्म ज्ञानं और अमरत्व नहीं प्रदान नहीं कर सकता. ऐसे में एक ग्रहीय योग में और तिथि में स्नान करने से अमरता कैसे मिल सकती है? कुंभ पुराण पुजारियों द्वारा दिया गया दुनिया का सबसे सस्ता मुक्ति और अमरत्व का रूप है. यह उसी तरह प्रचारित किया जा रहा है जैसे कोई भभूती हो या कोई ताबीज हो जिसे कोई ठग फ्री में गर्भवती होने के लिए सन्तानहीन महिलाओं को बांटता है. जबकि श्रुतियां कहती हैं ज्ञान के इतर कोई दूसरा मार्ग नहीं है “नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय” और यह मार्ग बहुत दुस्तर है “क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति “