
शैव पुराणों में प्रदोष व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है. वैष्णवों की एकादशी की तरह ही शैव भक्तों की त्रयोदशी प्रमुख तिथि है. ऐसी शैव सम्प्रदाय में मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं. इस व्रत को करने और प्रदोष काल में शिव पूजन से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं. शनि महादशा में प्रदोष व्रत अत्यंत लाभकारी होता है. साथ ही उसे सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है. माघ मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के प्रदोष व्रत बहुत लाभकारी होता है. गंगा में स्नान कर इस व्रत को करने का अनंत पुण्य बताया गया है.
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त-
माघ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ 26 जनवरी रविवार को रात 8 बजकर 54 मिनट पर हो रहा है. वहीं, इसका तिथि का समापन 27 जनवरी को सोमवार को रात 8 बजकर 34 मिनट पर होगा. ऐसे में माघ महीने का पहला प्रदोष व्रत उदयातिथि के अनुसार’ 27 जनवरी, सोमवार के दिन किया जाएगा. पूजा का शुभ मुहूर्त शाम शाम को 5 बजकर 56 मिनट से रात 8 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत भी कहा जाता है. स्कन्द पुराण में वार के अनुसार प्रदोष व्रत का अलग अलग फल बताया गया है. सोम त्रयोदशी का प्रदोष व्रत करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं. इस व्रत में चन्द्र ग्रह से सम्बन्धित श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए. शंकर शिव जी की आराधना धूप, बेल पत्र आदि से करनी चाहिए. दुग्ध से अभिषेक करना चाहिए.
प्रदोष व्रत ऐसे करें –
प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें. व्रत से पूर्व की रात्रि कुछ न खाएं. प्रदोष व्रत के दिन पूरे दिन उपवास रखना चाहिए और मन को शिव के चरणों में नियुक्त करना चाहिए. व्रत के दिन प्रदोष काल में विधि-विधान से पूजन करें. इस व्रत की पूजा प्रदोष काल में विस्तार से षोडश उपचारों से करनी चाहिए. सूर्यास्त से पहले दोबारा स्नान कर शुभ मुहूर्त में महादेव की पूजा में बैठें. शिव जी की पूजा में उनकी प्रिय चीजें प्रयोग करें – मदार के फूल, बेलपत्र, धूप-दीप आदि अर्पित कर उनकी विधिवत अर्चना करें. पूजा के दौरान आपका मुख उत्तर-पूर्व दिशा की तरफ रहना चाहिए. पूजा के बाद शास्त्रानुसार पंचाक्षर मंत्र का जप करें. प्रदोष व्रत के अगले दिन यानी चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव पूजा कर व्रत का पारण करें.
प्रदोष काल में इस प्रदोष स्तोत्र का पाठ करें –
जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत ।
जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥
जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद ।
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥
जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण ।
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥
जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय ।
जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥
जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन ।
जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥
प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः ।
सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥
महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च ।
महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः ।
ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥
दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् ।
अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥
दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः ।
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥
शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः ।
नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥
दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले ।
सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥
एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् ।
ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥
सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी ।
शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥
॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥