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स्वामी विवेकान्द पर हमने पहले बहुत कुछ लिखा है. मेरा परिप्रेक्ष्य दूसरा था. यहाँ वीडियों में विवेकानन्द के जीवन के दूसरे पहलू पर चर्चा है. विवेकान्द जिस कार्य को करने मिशन के साथ निकले थे उसमे हिन्दुओ ने एक रत्ती भी सहयोग नहीं किया, उन्हें एक रुपया नहीं दिया . हिन्दु मन्दिरों और परजीवी धूर्त पुराण बाबाओं को करोड़ो देते हैं लेकिन किसी क्रिएटिव व्यक्ति को भूखो मार देते हैं. यह सिर्फ स्वामी विवेकान्द के साथ नहीं हुआ, अनेक महान पुरुषों के साथ हिन्दुओं ने किया. तुलसीदास, रामानुजम , निराला जैसे अनेक हैं. यहाँ सिर्फ ठग प्रपंचवादी बाबा धनी हैं. विवेकान्द ने लिखा कि हिन्दू एक “पराधीन जाति” इसलिए दास चेतना सम्पन्न जाति है, इसका कुछ नहीं हो सकता. यह कोई मार्क्स के शब्द नहीं हैं, एक सन्यासी के शब्द हैं जिसने दुनिया में अपने अद्भुत व्याख्यानों से हिन्दू धर्म और वेदांत का नाम किया था. इस वीडियो में उनके पत्रों को आचार्य प्रशांत ने पढ़ा है –