
किस समय पृथ्वी अर्थात भूदेवी द्वारा भगवान विष्णु से पूछे जाने पर भगवान ने उन्हें सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से बताया था. उसी क्रम में पहले स्वयंभुव मन्वन्तर में उत्तानपाद और प्रियव्रत की कथा में उन्होंने बताया था कि प्रियव्रत ने सभी द्वीपों पर बड़े यज्ञों का आयोजन किया. यज्ञ खत्म होने पर वहां महर्षि नारद पधारे. प्रियव्रत ने उनसे जिज्ञासा की और पूछा कि हे देव ऋषि! मुझे सतयुग के बारे में बताएं. उस समय कैसा धर्म था.
नारद ने कहा- हे राजन, एक समय कृतयुग में मैं श्वेत द्वीप गया. वहां एक सरोवर के पास एक अत्यंत सुन्दर कन्या खिले हुए कमल के बीच उपस्थित थी. उस कन्या की सुन्दरता अद्भुत थी. उसे देख मैंने पूछा – हे कन्ये ! हे मधुर भाषिणी ! तुम कौन हो ? तुम क्या चाहती हो !
जब मैंने यह प्रश्न किया तब उसकी दृष्टि मुझ पर पड़ी, उसी समय मेरी स्मृति जाती रही. मैं चारो वेद और उसके छह अंगों सहित योग आदि सब कुछ भूल गया. आश्चर्यचकित और दु:खित मन मैंने उससे प्रार्थना की. उसी समय मैंने देखा, इसके शरीर में तीन पुरुष क्रम से प्रकट हुए और फिर अदृश्य हो गए.
मैंने पूछा -हे देवी! मुझे वेदों की विस्मृति क्यों हुई ? इसका क्या कारण है !
तब उस देवी ने कहा -मैं वेदों की माता हूँ. मेरा नाम गायत्री है. क्योकि तुम्हे गायत्री का कोई ज्ञान नहीं था इसलिए तुम्हें वेदों को विस्मृति हुई है.
जब मैंने पुन: पूछा कि वे तीन पुरुष कौन थे ?
तब उस देवी ने कहा- यह जो सुंदर पुरुष मेरी देह में हैं, वह ऋग्वेद हैं. यह स्वयं नारायण हैं. इसका स्मरण मात्र करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.
जिसे तुमने मेरे हृदय में देखा है, वे यजुर्वेद हैं, वे स्वयं ब्रह्मा हैं. वह पुरुष जिसे तुमने श्वेत वर्ण का देखा था वो सामवेद हैं, वे स्वयं रूद्र शिव हैं. (समस्त संगीत शिव के आनंद तांडव से ही प्रकट हुआ) जो कोई भी इसका पाठ करता है वह मुक्त हो जाता है. हे मुनि ! ये तीन वेद ही त्रिदेव हैं. इन वेदों का प्रारम्भ ‘अ’ से होता, इसी में सभी यज्ञ समाहित हैं. अब तुम्हे इसका ज्ञान हो गया है, तुम इन वेदों पुन: धारण करो और इसी में स्नान करो. यह कह कर वह देवी अदृश्य हो गई.
ऐसा उपनिषद में कहा गया है कि यह चराचर विश्व गायत्री का एक पाद ही है, देवी के शेष तीन पाद तो अमृतमय लोकों में हैं. “पदोस्य विश्व भूतानि त्रिपादस्य मृतं दिवि”. गायत्री को देवता कहा गया है इसलिए गायत्री रूप में दुर्गा को भी पुरुषिणी कहा जाता है.