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पराशक्ति को ब्रह्मसूत्र में ‘जन्मादस्य यत:” सूत्र में सबका आदि कारण कहा गया है. पौराणिक आख्यानों में देवताओं पर जब जब संकट आये तब तब उन्होंने इन्ही का आह्वान किया और इनकी पूजा की थी. आदि पराशक्ति दुर्गा का पूजन पहली बार कृष्ण ने रासमंडल में किया था ऐसा वैष्णव पुराण में लिखा हुआ है. अन्यत्र वैष्णव पुराण में त्रेता में राम ने भी दुर्गा की पूजा की थी और वर प्राप्त किया था. वैष्णव पुराण में ही कहा गया है कि दूसरी बार विष्णु ने मधुकैटभ का बध करने के लिए इनकी पूजा और स्तुति की थी.

उसी समय संकट आने पर ब्रह्मा ने भी दुर्गा की पूजा की थी. चौथी बार त्रिपुरासुर के वध के लिए शिव ने पराशक्ति की पूजा और अर्चना की थी और वर प्राप्त कर त्रिपुरासुर का वध किया था. पांचवी बार प्राणों पर घोर संकट आने पर वृत्रासुर के वध के लिए इंद्र और सभी देवताओं ने दुर्गा का आह्वान किया था और उसका वध करने में सक्षम हुए थे. उस समय सभी मुनि और ऋषियों ने दुर्गा की पूजा की थी और अनेक दैत्यों का वध करने में सक्षम हुए थे. यह पर से भी पर महादेवी हैं जिनकी पूजा हर कल्प में देवताओं ने संकट उपस्थित होने पर विघ्नों के विनाश के लिए की है. उपरोक्त स्निपेट ब्रह्मवैवर्त पुराण से लिया गया है.

शक्ति के इतर कोई दूसरा सत्य नहीं है यह पौराणिक मानते हैं और इसलिए गुप्त रूप से शक्ति पूजा और तन्त्र इनके सम्प्रदायों में प्रभावी हैं. पुराण प्रमुख रूप से छद्म तन्त्र ग्रन्थ हैं जिसमे तन्त्र की शुद्धता नहीं है. सभी पुराणों में तन्त्र छद्म रूप से प्रचारित हुआ है. अग्निपुराण जैसे पुराणों में तांत्रिक देवताओं की पूजा विधि भी प्राप्त होती है. भागवत पुराण भी कोई अपवाद नहीं है. भागवतपुराण भी मूलभूत रूप से तन्त्र ग्रन्थ ही है. इसका सबसे प्रसिद्ध हिस्सा तन्त्र साधना से ही सम्बन्धित है. यहाँ सेक्स को भगवतप्राप्ति का साधन बताया गया है. भागवत का रासलीला गुप्त तन्त्र ही है जिसमे कृष्ण ने रात्रि में तंत्र साधना की थी. पुराण में कृष्ण स्वयं भगवान हैं तो उनके द्वारा तांत्रिक दुर्गापूजन का प्रयोजन ही क्या हो सकता है? किसी दानव का वध भी नहीं करना था! हिन्दू धर्म के मन्त्र शास्त्र का निकष पंचदशी में ही होता है. “कामो योनिः कमला वज्रपाणिर्गुहा हसा मातरिश्वाभ्रमिन्द्रः । पुनर्गुहा सकला मायया च पुरूच्यैषा विश्वमातादिविद्योम् ॥” द्वारा यही कहा गया है- यह परा देवी ही आत्मविद्या है, यही ब्रह्म विद्या हैं. त्रिपुरसुन्दरी के रूप में इसी ब्रह्मविद्या के सिंहासन के ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र सदाशिव, इंद्रादि पाए बन गये हैं. देवी प्रणव से युक्त पंचदशी मन्त्र से श्रेष्ठ कोई मन्त्र नहीं है. श्रीविद्या से श्रेष्ठ कोई विद्या नहीं है. यह विद्या सभी तंत्रों का सम्हार रूप है.