
गौडीय वैष्णव पंथ एक अवैदिक पन्थ है जिसने नाम कीर्तन से अपना प्रचार किया. इसके संस्थापक बंगाली कीर्तनियां चैतन्य महाप्रभु थे. इस पन्थ का आधार ग्रन्थ भागवत पुराण और कृष्ण यजुर्वेद में प्रक्षिप्त कलिसंतरण उपनिषद है. इस प्रक्षिप्त कलिसंतरण उपनिषद में “हरे राम हरे कृष्ण” मन्त्र प्राप्त है. मजेदार बात ये है कि “हरे कृष्ण हरे कृष्णकृष्ण कृष्ण हरे हरेहरे राम हरे रामराम राम हरे हरे” को ये महामन्त्र कहते हैं जो अवैदिक है. कुछ विद्वान् इसे भी गलत मानते हैं क्योंकि कीर्तन के लिए यह ‘हरे राम हरे कृष्ण’ से शुरू होता है और प्रक्षिप्त कलिसंतरण उपनिषद में यही है. दूसरी तरफ वेद और प्रस्थानत्रयी में कहीं भी ऐसे नाम को भगवान का नाम नही बताया गया है. यह मन्त्र भी नहीं हो सकता क्योंकि मन्त्र के आदि में प्रणव का योजन आवश्यक माना गया है. वेद में कहा गया है कि प्रणव सभी मन्त्रों का सेतु है. अस्तु यह मन्त्र एक प्रपंच ही है क्योंकि नाम को उपनिषद में प्रपंच ही कहा गया है. १५वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन से यह मंत्र प्रसिद्ध हुआ.

हरिदास ठाकुर (हरिदास खान) का जन्म १३७२ शकाब्द (१४४१ ई.) में वर्तमान बंगलादेश के खुलना जिले के अन्तर्गत बूढन नामक गाँव में एक सम्पन्न सामंत मुस्लिम परिवार में हुआ था. गौडीय पन्थ के प्रारम्भिक दिनों में विस्तार के लिए उस समय इन्हें के मुस्लिम शासकों के सहयोग की जरूरत थी. इन स्वघोषित प्रपंचवादी कीर्तनियों ने इस मुस्लिम को अपने गैंग में शामिल कर लिया. यह चैतन्य का प्रमुख आदमी बन गया. प्रपंचवादियों ने इसका नाम खान से ठाकुर कर दिया और अपने प्रपंच फ़ैलाने वाले महात्म्य में इसे ब्रह्मा जी, प्रहलाद और महातपा का सम्मिलित अवतार बना दिया.

ऐसे ही इन्होने अपने प्रपंचपूर्ण लीला की किताबे लिखीं जिनमे इनके पन्थ में सभी प्रसिद्ध नाम कोई न कोई अवतार है. चैतन्य महाप्रभु की लीला भागवत पुराण और अन्य वैष्णव प्रपंच ग्रन्थों के आधार पर चैतन्य भागवत इत्यादि किताबें लिख कर प्रचारित कर दिया कि ये श्री कृष्ण के अवतार हैं. चैतन्य लीला की किताबे भागवत और अन्य वैष्णव पुराणों के अनुसार ही लिखी गईं. चैतन्य कृष्ण की तरह ही बाल्य काल से लीला करते हुए दिखाए गये हैं और बाल्यकाल में माता को अपना लोक और ब्रह्मांड दिखाया था, ऐसा प्रपंच किया गया है. चैतन्य एक अच्छे कलाकार थे, उन्होंने भागवत पुराण कि कहानियों का स्वयं पर अध्यारोप किया और उसकी फैंटसी में जीते थे. उन्होंने जो गपोड़शंख लिखे उसमे लिखा कि चैतन्य स्वयं कृष्ण है और विष्णु से सभी गुणों में उत्तम है.

“उपनिषदों में जिसे निर्विशेष ब्रह्म के रूप में वर्णित किया गया है, वह उनके शरीर का तेज है, और परमात्मा के रूप में जाना जाने वाला भगवान उनका पूर्ण अंश है। भगवान चैतन्य स्वयं भगवान कृष्ण हैं, जो छह ऐश्वर्यों से परिपूर्ण हैं। वह परम सत्य है, और कोई भी सत्य उससे बड़ा या उसके बराबर नहीं है।”
गपोड़शंख में इन्होने पुराणों की तर्ज पर लिखा और कहा है कि जो भगवान चैतन्य की लीला सुनेगा वह ब्रह्म लोक पायेगा. गया यात्रा के प्रसंग में लिखा कि जो गया यात्रा प्रसंग सुनेगा उन्हें गया श्राद्ध का फल मिलेगा. चैतन्य भागवत में लिखा है कि चैतन्य ने विष्णु सिंहासन पर बैठकर भक्तों को अपना ऐश्वर्य दिखाया. नित्यानन्द ने षडभुज रूप देखा और एक धूर्त ने विश्वरूप देखा.

चैतन्य पूर्व जन्म में एक सिद्ध ब्राह्मण के यहाँ नौकर थे. उसने प्रसन्न हो कर आशीर्वाद दिया था कि अगले जन्म में तुम किर्तनिया होगे और घूम घूम कर कीर्तन करोगे लेकिन तुम्हारी मुक्ति इस जन्म में नहीं होगी क्योकि तुम प्रपंच बनाओगे जिससे लोगो में अज्ञानता फैलेगी. देहपात होने के बाद तुम एक ब्राह्मण के यहाँ जन्म लोगे और उसके आशीर्वाद से तुम्हे मुक्ति मिलेगी. चैतन्य स्वयं एक सिद्ध कलाकार था और उसने अनेक प्रपंच स्वयं रचे और कुछ आविष्कृत किया जैसे वर्तमान का राधाकुंड धान के खेत का एक गड्ढा था. हुआ यूँ कि एक बार कीर्तनियों संग चैतन्य पगडण्डी से गुजर रहा था. उसने गंदले गडढे में मछलियों को देखा और हा कृष्ण, हा राधे करके दौड़ा और बोला यही राधा कुण्ड है. बाद में वैष्णव प्रपंचवादियों ने वहीं बड़ा सा राधाकुण्ड बनवा दिया जिसमे आजकल अनेक मूर्ख मुक्ति प्राप्त करते हैं.
इस प्रकार के बेहूदा प्रपंच रचे और हिन्दूओं को पथभ्रष्ट किया. इन पौराणिकों का परवर्जन ने जनता को अलग ही विकृत किया और अंधकार में गिराया. इस कारण हिन्दू अज्ञानता में धीरे धीरे पतित हो गया. जब प्रारम्भिक पुराण लिखे गये तो उसका प्रयोजन कुछ और ही था लेकिन कालान्तर में यह विकृत प्रोपगेंडा ग्रन्थ बन गये जिसमे धार्मिक विकृतियाँ प्रविष्ट हो गईं. भक्ति मार्ग द्वारा मनुष्य का जितना पतन हुआ किसी मार्ग में नहीं हुआ. यह एक विकृति का राजमार्ग है क्योंकि इसका आधार विकृत कथाएं हैं जो उच्च जातियों के राजाओं के इदगिर्द बुनी गई हैं. ये राजा पापी थे और अनैतिक भी लेकिन इनकी पूजा से मुक्ति बताई गई.