 
									भचक्र की द्वादश राशियों के स्वरूप, प्रकृति और स्वभाव को जाने बिना फलादेश नहीं किया जा सकता है। मसलन किसी ग्रह दशा में वह ग्रह अपना फल कब करेगा इसका निर्णय उसकी राशि स्थिति से तय होता है। सभी ज्योतिष ग्रन्थों में प्रारम्भ में राशियों और ग्रहों के स्वरूप का वर्णन किया गया है। द्वादश राशियों का संक्षिप्त वर्णन कुछ इस प्रकार से है –
चर राशियाँ : मेष , कर्क , तुला , मकर चर राशियाँ हैं
स्थिर राशियाँ : वृष , सिंह , वृश्चिक , कुम्भ स्थिर राशियाँ है 
द्विस्वभाव : मिथुन , कन्या , धनु और मीन द्विस्वभाव राशियाँ है 
चतुष्पद राशियाँ -मेष, वृष, सिंह, धनु का उत्तरार्ध (१५-३० डिग्री), मकर राशि का पूर्वार्ध (०-१५ डिग्री) चतुष्पद है। ये राशियाँ दशम भाव में बली होती हैं।
नर राशियां -मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्ध (०-१५ डिग्री ) तथा कुम्भ नर राशियाँ हैं । ये राशियाँ लग्न में बली होती हैं ।
जल राशियाँ – कर्क, मकर का उत्तरार्ध (१५-३० डिग्री) जलचर है तथा मीन ये चतुर्थ भाव में बली कही गई हैं ।
कीट राशियाँ -वृश्चिक को कीट राशि कहा गया है । यह सप्तम में बलवान होती है ।
पृष्ठोदय राशियाँ : मेष , वृष , कर्क . धनु और , मकर पृष्ठोदय राशियाँ हैं ( इन राशियों में स्थित ग्रह देर से अपना प्रभाव दिखाते हैं और देरी से काम होता है । इन राशियों में बैठे पाप ग्रह बहुत अशुभ होते हैं जबकि शुभ ग्रह मध्यम फल देते हैं । )
शीर्षोंदय राशियाँ : मिथुन , सिंह, कन्या, तुला , वृश्चिक और कुम्भ शीर्षोंदय राशियाँ हैं ( इन राशियों में स्थित ग्रह शीघ्र ही अपना फल देने लगते हैं । शीर्षोंदय राशियों में ग्रह प्रबलता से शुभ फल देते हैं और अशुभ ग्रहों का इन राशियों में प्रभाव कम अशुभ होता है । )
मीन में दोनों प्रकार के गुणों का सम्मिश्रण होता है इसलिए इसे उभयोदय कहते हैं.
दिन में बली राशियाँ : मेष , वृष , मिथुन , कर्क, धनु , मकर
रात्रि बली राशियाँ : सिंह , कन्या, तुला, वृश्चिक, कुम्भ , और मीन
ह्रस्व तथा दीर्घ राशियाँ :
१- मेष, वृष , कुम्भ , मीन ह्रस्व राशियाँ कहीं गई हैं ।
२-मिथुन , कर्क, धनु, मकर ये मध्यम ।
३-सिंह, कन्या , तुला , वृश्चिक ये दीर्घ राशियाँ हैं ।
पुरुष और स्त्री राशियाँ –
पुरुष राशियां– मेष , मिथुन , सिंह, तुला, धनु , और कुंभ यह राशि पुरुष या विषम या ओज राशि कही गई हैं । इन राशियों के स्वभाव में कठोरता , क्रूरता, उग्रता , आक्रामकता होती है।
स्त्री राशियां- वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक,  मकर और मीन राशियां शुभ राशि, स्त्री राशि या सम राशि कही गईं हैं। स्त्री ,सम और शुभ राशियां स्वभाव की नम्रता, सहनशीलता को प्रदर्शित करती हैं।
उत्पादक राशियाँ -कर्क, वृश्चिक, मीन
अनुत्पादक राशियाँ -मिथुन, सिंह, कन्या
राशियों की जाति :
कर्क, वृश्चिक, मीन -ये तीन राशियाँ ब्राह्मण वर्ग की हैं
मेष, सिंह, धनु -ये तीन राशियाँ क्षत्रिय वर्ण की हैं
वृष, कन्या, मकर,-ये तीन राशियाँ वैश्य वर्ण की हैं
मिथुन, तुला,कुम्भ -ये तीन राशियाँ शूद्र वर्ण की हैं
राशियों की धातु, मूल, जीव संज्ञा :
धातु मूलक राशियाँ- मेष, कर्क, तुला, मकर धातु मूलक हैं.
मूल मूलक राशियाँ : वृष, सिंह, वृश्चिक, और कुम्भ ये मूल राशियाँ हैं.
जीव राशियाँ: मिथुन, कन्या, धनु, और मीन जीव राशियाँ हैं.
राशियों के रंग :
मेष -लाल , वृष -सफेद , मिथुन -शुक की तरह हरा , कर्क -लाल-श्वेत मिश्रित , सिंह -धूम्र , कन्या -पांडु , तुला-बहुरंगी , वृश्चिक-काला, धनु-सुवर्ण जैसा , मकर-पिंगल , कुम्भ -चितकबरा , मीन -भूरा वर्ण । अलग अलग ग्रंथो कहीं कहीं रंग में मतभेद है । तारों के परावर्तन और विभिन्न ऋतुओं में राशियों के रंगों में परिवर्तन सम्भव है ।
राशियों के तत्व :
अग्नि तत्व प्रधान -मेष, सिंह, धनु
वायु प्रधान- कुम्भ, मिथुन, तुला
पृथ्वी तत्व प्रधान -वृष,कन्या, मकर
जल तत्व प्रधान -कर्क, वृश्चिक, मीन   राशियों के अन्न और वस्तुएं –
 १- मेष (वस्त्र ) २-वृष (शालि या चावल ) ३-मिथुन-(वन फल निचय ४-कर्क –(केला ), ५-सिंह (मुख्य धान्य गेहूं आदि ), ६-कन्या-( बांस इत्यादि जिनमे त्वचा ही सार है ), ७-तुला –(मूंग , तिल इत्यादि और बारीक वस्त्र ), ८-वृश्चिक-(ईंख , लोहा आदि , ९-धनु-(शस्त्र, अश्व), मकर –(सोना आदि ), कुम्भ –(जल के पुष्प ), मीन –(जल में उत्पन्न होने वाले पदार्थ मखाना , सिंघाड़ा इत्यादि ). ग्रन्थान्तरों में थोड़ा मतभेद है इसलिए इस विषय पर व्यापक शोध की जरूरत है । बारह राशियाँ दोनों गोलार्धों में ऋतुओं के अनुसार उदित और अस्त होती हैं, मसलन भारत उत्तरी गोलार्ध में स्थित है तो सर्दी के दिनों में कुछ राशियाँ ही पूरी तरह दृश्य होंगी और उनके तारे हमें दिख सकते हैं । स्पष्ट है कि सर्दी के दिनों में जिन राशियों और नक्षत्रों का प्रभाव भारत पर विशेष रूप से पड़ेगा उसके अनुसार वनस्पतियों और पुष्पों का भी प्रकटन होगा, जब मीन राशि उत्तरी गोलार्ध में दृश्य होगी उन्हीं दिनों में उसके वनस्पतियाँ प्रकट हो सकती हैं या इस राशि से जुड़े जीव जन्तु अपनी वृद्धि कर सकते हैं। सभी अन्न, फल फूल और वनस्पतियाँ ऋतुओं के अनुसार वृद्धि को प्राप्त होती हैं। उत्तरी गोलार्ध में चार प्रमुख ऋतुओं में भचक्र की बारह राशियाँ और अन्य प्रमुख राशियाँ आकाश में प्रमुखता से निम्नलिखित क्रम से दिखतीं हैं –
उत्तरीगोलार्ध की राशियाँ – ( मार्च से मई मध्य तक दिखने वाली -वसंत सम्पात)

उत्तरी गोलार्ध की राशियाँ -(गर्मी ऋतु की राशियाँ जून मध्य से अगस्त मध्य तक दिखने वाली )

उत्तरी गोलार्ध की राशियाँ –( सितम्बर मध्य से नवम्बर मध्य तक दिखने वाली राशियाँ- शरद सम्पात )

उत्तरी गोलार्ध की राशियाँ –(दिसम्बर मध्य से फरवरी मध्य तक दिखने वाली राशियाँ –सर्दी का मौसम )



 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			