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पहले हमने लिखा था कि 7वीं शताब्दी में किये गये आदि शंकराचार्य के भाष्यों में कहीं भी भागवत पुराण का जिक्र और उद्धरण नहीं मिलता है. आदि शंकराचार्य के भाष्य में वाल्मीकि रामायण का भी उद्धरण नहीं मिलता जबकि मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण का जिक्र मिलता है. उन्होंने इसके श्लोक उधृत किये हैं. श्रीमदभगवद्गीता पर पहला भाष्य भगवान आदि शंकराचार्य का ही उपलब्ध होता है, रामानुजाचार्य इत्यादि सभी उनके ही फॉलोवर बन कर गीता का सांप्रदायिक भाष्य किये. सुत संहिता में 18 पुराण निम्नलिखित हैं –

भागवत पुराण अद्वैत वेदांत के स्थापित होने के 200-300 साल बाद लिखा गया था ऐसा प्रतीत होता है. भागवत पुराण में प्रमुख रूप से अद्वैत मत को प्रख्यापित किया गया है. कृष्ण का अन्तिम उपदेश भी अद्वैत मत का ही पोषक है साथ में शुक देव को परीक्षित को दिया गया अंतिम उपदेश भी अद्वैत मत को ही प्रख्यापित करता है. स्कन्द पुराण शैव पुराणों में शिव पुराण के बाद का सबसे महत्वपूर्ण शैव पुराण है और हिन्दू धर्म के ऐतिहासिक मन्दिरों के बावत साक्ष्य के रूप में भी माना गया है. स्कन्द पुराण देवी 18 पुराणों में भागवत पुराण को मानता है न कि भागवत पुराण को.