
मार्गशीर्ष माह यानि अगहन के महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे खास होती है. जिसे मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है . मोक्षदा एकादशी, जैसा नाम से ही स्पष्ट है यह मोह का नाश करने वाली और मोक्ष देने वाली है. ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान दिया था अत: इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है. हलांकि किसी पुराण में ऐसा वर्णन नहीं मिलता. ऐसा मध्ययुगीन वैष्णव मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें कर्मों के बंधन से मुक्ति मिलती है. जो भी मोक्षदा एकादशी व्रत को करता है उसके पापों का नाश होता है. इस व्रत के प्रभाव से विष्णु स्वयं विमान भेजते हैं और व्रती उस पर सवार होकर वैकुण्ठ जाता है.
मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का प्रारम्भ 11 दिसंबर को तड़के 3:42 एम बजे होगा और समापन 12 दिसंबर को 1:09 एम बजे होगा. उदयातिथि के अनुसार एकादशी का व्रत बुधवार 11 दिसंबर को रखा जाएगा और व्रत का पारण गुरुवार 12 दिसंबर को सुबह 7:05 बजे से सुबह 9:09 बजे के बीच किया जा सकता है.
मोक्षदा एकादशी की कथा –
एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं. अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा. प्रात: राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न का भेद पूछा. तब ब्राह्मणों ने कहा कि- हे राजन! इस संबंध में पर्वत नामक मुनि के आश्रम पर जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछो. राजा ने ऐसा ही किया। जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी तो वे चिंतित हो गए. उन्होंने कहा कि- हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है. अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण करो, तो उनकी मुक्ति हो सकती है. राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया. इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई.