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शैव सम्प्रदाय की सबसे महत्वपूर्ण तिथि है त्रयोदशी. यह तिथि भगवान शिव की पूजा के लिए प्रशस्त बताई गई है इसलिए इस तिथि में पड़ने वाले प्रदोष काल में उनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है. प्रत्येक माह की कृष्ण त्रयोदशी और शुक्ल त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान से भगवान शिव का पूजन और उनकी प्रसन्नता के लिए व्रत भी रखन चाहिए. प्रदोष व्रत के भगवान आशुतोष की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. प्रदोष व्रत को एकादशी की तरह ही महत्वपूर्ण माना जाता है. इसका एकवर्ष, पांच वर्ष या बारह वर्ष अनुष्ठान करना चाहिए. मार्गशीर्ष महीने में अंतिम प्रदोष व्रत शुक्र प्रदोष व्रत है. प्रदोष के दिन व्रत रखकर संध्या के वक्त शिव भगवान समेत उनके पूरे परिवार की उपासना की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है.

प्रदोष मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार,  पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 12 दिसंबर को 10:26 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, यह त्रयोदशी तिथि 13 दिसंबर को शाम 7:40 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत 13 दिसंबर शुक्रवार को रखा जाएगा. प्रदोष काल शाम 5 बजकर 26 मिनट से शाम 07 बजकर 40 मिनट तक रहेगा.