महर्षि भृगु से पूछे जाने पर अच्छा जन्म पाने वाले द्विज लोग भी जल्दी मृत्यु को प्राप्त क्यों करते हैं ? तो एक तो उत्तर है भाग्य से आयु मिलती है और पूर्व काल में अच्छे कर्म किये थे इसलिए अच्छी आयु और भोग मिला. दूसरा उसी से जुड़ा हुआ है. जो मनुष्य ईश्वर और ब्राह्मणों का प्रेमी होता है, धार्मिक कार्य में आलस नहीं करता अर्थात दान-पुण्य करता रहता है, शुद्ध भोजन ग्रहण करता है, मर्यादा का पालन करता है, रोगी होने पर उचित औषधि का सेवन करता है, जो वेदों अभ्यास करता है तथा उसका अनुगमन करता, वह ग्रहों द्वारा दी गई आयु का पूर्ण भोग करता है. धर्म करने से आयु की वृद्धि होती है.
ये धर्मकर्मनिरता द्विजदेवभक्ता, ये पथ्यभोजनरता विजितेन्द्रियाश्च ।
ये मानवा दधति सत्कुशीलसीमास्तेषाममिदं कथितमायुरुदारधीमि: ।
अभ्यासेन वेदानामाचारस्य च वर्जनात।
आलस्यादअन्नदोषश्च मृत्युविप्रांचिज घांसति ।।
कुछ दशा जो जन्म के कारण अनिष्टकारी होती है ..
1-कर्क, वृश्चिक, मीन के अंतिम अंश में अर्थात 29:30 अंश पार करके कोई ग्रह कुंडली में है तो उसकी दशा घातक होती है.
2-मघा-मूल-अश्विनी नक्षत्र में जन्म हो तो मंगल की दशा अनिष्टकारी होती है.
३- पूर्व फाल्गुनी, पूर्वाषाढ और भरणी में जन्म हो तो बृहस्पति की दशा घातक होती है.
4-मृगशिरा, धनिष्ठा, चित्रा में जन्म हो तो शनि की दशा अनिष्टकारी होती है.
5-अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती में जन्म हो तो बुध की दशा अन्तर्दशा अनिष्टकारी होती है.
6-द्वितीयेश की महादशा में द्वादशेश की अन्तर्दशा अनिष्टकारक होती है.
7-जिस महादशा में जन्म हो उससे तृतीय, पंचम, अथवा सप्तम महादशा यदि नीच, शत्रुराशिगत, अस्त ग्रह की हो तो अनिष्ट करने वाली होती है.

