राहु एक विचित्र ग्रह है इसलिए इसका वस्त्र भी विचित्र है. यह दैत्य का सिर है इसलिए यह अकेला किसी ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो तो जिस राशि में होता उसके चरित्र के अनुसार फल करने लगता है. राहु के कुछ अनिष्ट फल विशेष योगो में देखने में आते हैं. राहु यदि सूर्य और चन्द्रमा से युत हो तो यह अनिष्टकारक हो सकता है. गुरु चांडाल योग एक अनिष्ट कारक योग है जिसका फल अंतत: अच्छा नहीं होता. प्रारम्भ में यह जातक को सफलता दे सकता है लेकिन अंत में उसका नाश करता है. रजनीश की कुंडली में राहु नाशकारी सिद्ध होता है. राहु का अनिष्ट फल कुछ इस प्रकार कहा गया है –
सूर्याचन्द्रमसोभ्यां योगे पात्स्य विवेकहानि: स्यात ..
सूर्य या चन्द्रमा के साथ राहु हो व्यक्ति का विवेक नष्ट होता है और उनकी निर्णय क्षमता बाधित होती है. राहु उनका ग्रहण कर लेता है और अपने अनुसार फल देता है. लग्न मध्य में यह हो तो समस्या बड़ी हो सकती है.
सहसा विपदामुदयस्त्रिकभवनेषु लग्न सहितेषु ..
यदि त्रिक भावों में अर्थात 6, 8, 12 में सूर्य और चन्द्र के साथ हो तो अकस्मात विपत्ति आने का योग रहता है. यह विनाशक भी हो जाता है.
रव्यारराहुशनय: समवेता: कष्टदायक: बहुश:/ राज्यादभितीं काले धनसुतशोकं तथा नियतं
सूर्य, मंगल, शनि और राहु एक ही राशि में पास पास हो तो उस भाव का फल कठिनता से मिलता है, उस भाव के फल बाधित होते हैं. यदि लग्न में राहु मेष, वृष, कर्क में हो और शनि, चन्द्र, सूर्य , मंगल से युत हो तो कुंडली में दोष आ जाता है. जातक को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
लग्ने चासुरगुलिकाढ्ये च भावपो दु:स्थकुज संयुक्त: ।
नष्टं तदभावफलं भौमार्क्षशेपि हानिदस्तद्वत ।।
यदि लग्न में राहु हो या गुलिक हो और साथ में 6, 8, 12 में मंगल हो व कोई ग्रह साथ हो तो साथी ग्रह का भाव फल नष्ट होता है. इसी स्थिति में जो भावेश त्रिक स्थान में मंगल की राशि या नवांश में हो तो उसके भाव फल भी नष्ट हो जाते हैं.
सुतौ ये ये भावाधिनाथा जन्मनि राहुणायत्ता ।
सौम्यैर्दृष्टा युक्ता विज्ञेया भाव फल घातय:।।
जन्म कुंडली जो जो भावेश 6, 8, 12 में राहु के साथ हो और उनके अंशों निकटता हो 7-10 अंश के भीतर हों और शुभ ग्रह से भी दृष्टि सम्बन्ध हो या युति हो तो राहु के साथ स्थित ग्रह की राशि वाले भावों का फल खत्म होता है या उसका ह्रास होता है. यदि यह राहु शुभ ग्रहों में शुक्र, बुध या शुक्र के साथ हो तो यह हानि बड़ी हो जाती है.

उपरोक्त सूत्रों के आधार पर देखें तो उदाहरण मधुबाला की यह कुंडली है. इस कुंडली में राहु लग्न में अष्टमेश-पंचमेश के साथ युक्त है. बुध की मूलत्रिकोण राशि और उच्च राशि कन्या ही है इसलिए प्रमुख फल इस राशि की होनी लाजमी है. राहु बुध पर मारकेश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है जो पाप मारक है. इनकी कोई सन्तान नहीं हुई, प्रेम की अंत में हानि हुई. राशिस द्वादश है तो इनके पंचम, सप्तम, द्वादश, द्वितीय भाव की हानि हुई. पति का प्रेम नहीं मिला, सन्तान नहीं हुई और विकट रोग में इनकी बृहस्पति अंतर्गत बुध की दशा में मृत्यु हो गई.
इस प्रकार ये कुछ योग हैं जिनके द्वारा राहु के चरित्र को समझा जा सकता है. राहु जिस हॉउस में बैठता लगभग उसका पूरा अधिग्रहण करता हुआ देखा जाता है.

