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भगवान विश्वरूप हैं इसलिए संसार की सभी मूर्तियों में उस एक ईश्वर का प्राकट्य है. यह संसार भगवान शिव की अष्ट मूर्तियों का ही मूर्तिमान स्वरूप है. पुराण के अनुसार, शिव की अष्ट मूर्तियाँ -शर्व, भव, रूद्र, उग्र, भीम, ईशान और महादेव के नाम से प्रसिद्ध हैं. यही अष्ट मूर्तियाँ एक तरह से भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्रमा के रूप में अधिष्ठित हैं. भगवान शिव ही रजोगुण की बहुलता से विश्व की उत्पत्ति करते हैं, इस समय वे भव कहे जाते हैं, प्रबल तमोगुण से संहार करते हैं तब हर नाम से उनका वर्णन किया जाता है और जब वे संसार को सत्वगुण से सुख देते हैं तब ऋषिगण उन्हें मृड कहते हैं. जब वे त्रिगुणातीत होते हैं तब वे शिव कहे गये हैं.
बहुलरजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नमः ।
प्रबलतम से तत्संहारे हराय नमो नमः ॥
जनसुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौमृडाय नमो नमः ।
प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नमः ॥

शर्व –भगवान शिव का शर्व रूप चराचर जगत को धारण करता है.

भव-यह रूप संसार को जीवन देने वाला रूप है जो जल में प्रतिष्ठित है.

रूद्र-शिव का रूद्र रूप भीतर बाहर गतिशील रहकर विश्व का भरण पोषण करता है और स्वयं भी स्पन्दित होता रहता है.

भीम –शिव का आकाशात्मक रूप ही भीम रूप है जो सभी भूतों का लय स्थान है.

पशुपति-सभी आत्माओं का अधिष्ठान, सभी क्षेत्रों का निवास स्थान और पशु रूप जीव के पाश को काट कर मुक्त करने वाले शिव स्वरूप को ही पशुपति कहा जाता है.

सूर्य – जो सूर्य देव सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करते हैं उन्हें ईशान कहा गया है.

महादेव- जो चन्द्रमा रूप में स्थित हो समस्त जगत को अपनी जीवनदायिनी किरणों से आप्यायित करते हैं उन्हें ही महादेव संज्ञा दी गई है.

आत्मा- शिव का आठवां रूप आत्मा है. यह सात स्वरूपों की अपेक्षा यह सर्वव्यापक है इसलिए यह समस्त चराचर जगत शिव का ही स्वरूप है.