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शरद पूर्णिमा हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. माना जाता है कि इस दिन ही रासलीला हुआ था और माता लक्ष्मी आश्विन मास की पूर्णिमा को ही समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थीं. इसे कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है. शरद पूर्णिमा की रात को बहुत खास माना जाता है. इस दिन पूर्णिमा है इसलिए चन्द्रमा की 16 कलाएं पूर्ण होती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सुख-समृद्धि आती है. शरद पूर्णिमा के दिन चांदनी रात में खीर रात भर के लिए रख कर सुबह प्रसाद के रूप में खाया जाता है. शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को खीर अर्पित करने की परंपरा है. खीर को केवल मिट्टी या चांदी के बर्तन में ही रखना चाहिए. आश्विन पूर्णिमा में दान-धर्म करने से सहस्रगुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है. धर्म ग्रंथों में इस दिन घी दान का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन कांसे के बर्तन में घी भरकर दान करने से हर तरह के रोग और दोष खत्म हो जाते हैं. इस दिन तिल का दान करने से घर में होती है उन्नति. शास्त्रों के अनुसार इस दिन घोड़े को चारा खिलाने से रुके काम बनते हैं और अश्विन देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. अश्विन पूर्णिमा के स्नान के लिए घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डाल लेनी चाहिए. साथ ही पानी में आंवला या रस और अन्य औषधियां डालकर नहा लेने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं.

मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 40 मिनट पर शुरू हो रही है. इस तिथि का समापन 17 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 55 मिनट पर होगा. ऐसे में शरद पूर्णिमा बुधवार, 16 अक्टूबर को मनाई जाएगी.