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शास्त्र में शाक्त आचार्यों ने लिखा है कि पर्व में दिन की महत्ता होती है मुहूर्त की महत्ता नहीं होती है. नवरात्रि सारे दिन शुभ मानी गई है और सारे दिन पूजन किया जा सकता है. भारत में किसी चीज पर कोई एक मत नहीं है. एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय की बात को नहीं मानता क्योंकि दोनों के धर्म जिस विचार पर आधारित हैं वह अलग अलग हैं. वैदिक काल में भी यह था. जो कट्टर वैदिक आचार्य थे वे उत्तरायण में शादी के लिए कहते थे, जबकि दूसरे जो धर्म का धंधा करते थे वे हर काल में शादी करने के पक्ष में थे क्योकि शादी में ज्यादा दक्षिणा मिलती है और अन्य सामग्री भी मिलती है, तो लोगो की सुविधा के अनुसार वो सारे प्रपंच करते थे. प्रपंचवादी आज भी वैसे ही हैं, उनका अंतिम उद्देश्य लड्डू बेचना होता है.

वर्तमान समय में उत्तर भारत में मुहूर्त वाले पंडितों दो तीन गिरोह है. एक प्रमुख गिरोह काशी में है दूसरा उज्जैन में है और कुछ हरिद्वार में हैं. ऐसे अलग अलग जगह गिरोह बना कर मुहूर्त निकालते रहते हैं, उनकी आपस में नहीं पटती है इसलिए एक त्यौहार में दो दो तिथि होती है. होलिका रात्रि में जलाई जाती है, जब ये पहली बार जलाई गई थी तो उसका मुहूर्त नहीं लिखा गया था. प्राचीन काल से लोग होलिका अर्धरात्रि में जलाते हैं. इसमे किसी मुहूर्त की जरूरत ही नहीं है. होली सुबह से प्रारम्भ हो जाती है, यह एक उत्सव है इसमें मुहूर्त की कोई जरूरत नहीं है. महूर्त की जरूरत विशेष अनुष्ठान के लिए होती है. सामान्य पूजा के लिए मुहूर्त कि कोई जरूरत नहीं होती.

पुराण में लिखा है कि बृहस्पति से चन्द्रमा तक कुल 14 नक्षत्र में दुर्गा की पूजा से धर्म, अर्थ, सुख की प्राप्ति होती है. इससे आगे 10 नक्षत्र में पीड़ा और राज भय होता है. यह विशेष अनुष्ठान के सन्दर्भ में कहा गया है. विशेष अनुष्ठान के लिए विशेष मुहूर्त की जरूरत होती है और यह मुहूर्त वही निकाल सकते हैं जिन्हें धर्म शास्त्र और साधनाओं का पूर्ण ज्ञान है. नवरात्रि एक पर्व है इसलिए नवरात्रि में सारा दिन ही शुभ माना जाता है. शास्त्र में शाक्त आचार्यों ने लिखा है कि पर्व में दिन की महत्ता होती है मुहूर्त की महत्ता नहीं होती है. नवरात्रि सारे दिन शुभ मानी गई है और सारे दिन पूजन कर सकते हो. अष्टमी आठवां दिन होता है, अष्टमी दुर्गा को विशेष प्रिय है इसलिए इसदिन शाक्त धर्म में महाअष्टमी की पूजा की जाती है. यदि अष्टमी को नवमी के दिन किया जायेगा तो इस दिन का फल प्राप्त नहीं होगा और महाअष्टमी की पूजा भी सम्भव नहीं होगी. ये धूर्त मुहूर्त पंडित हिन्दुओ का धर्म नाश करने पर तुले हुए हैं. ये वही धूर्त हैं जिन्होंने राहु काल में मन्दिर का भूमि पूजन करा दिया था और बिना मुहूर्त के ही मुहूर्त निकाल कर मन्दिर उद्घाटन करवा दिया था. इसका अशुभ फल नरेंद्र मोदी को प्राप्त हुआ, वह अयोध्या सहित सारे वैष्णव तीर्थ की संसद सीट हार गया और लोकसभा चुनाव में किसी तरह EC के द्वारा 240 सीट पा सका.