सपनों के स्वरूप की चर्चा वेदों और उपनिषदों में प्राप्त होती है. बृहदारण्यक उपनिषद में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है. आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए स्वप्न एक महत्वपूर्ण विषय है इसलिए ब्रह्मसूत्र में स्वप्न को लेकर सात सूत्र लिखे गये हैं जिन पर आदि शंकराचार्य और अन्य प्रमुख आचार्यों का भाष्य है. इस सूत्रों पर जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भाष्य का निहितार्थ दिया जाता है साथ में रामानुजाचार्य का मत भी अंत में दिया जा रहा है-
1-सपने जीव स्वयं बुनता है. यह आत्मा की ही प्रमुख रूप से सृष्टि है. यह सृष्टि जाग्रत और सुसुप्ति अवस्था के बीच होती है. सपने में विचित्र सृष्टि करने का यह गुण आत्मा में इसलिए है क्योकि वह ईश्वर का अंश है.
2-सपने में देखी गई चीजें जैसे रथ, महल इत्यादि मायात्मक होते है अर्थात मिथ्या होते हैं क्योकि सपने के टूटने के बाद उनकी उपलब्धि नहीं होती. जैसे कोई मनुष्य दिल्ली देश में सपना देखता है कि वह मुबई गया और वहां वह सो कर उठ गया. लेकिन वह दिल्ली में ही सो कर उठता है. कोई भारत में रात बारह बजे अपने घर में सो कर सपने देखता है कि सूरज मध्याह्न में चमक रहा रहा है. जबकि भारत में आधी रात है. सपने इसलिए वास्तविक नहीं होते.
३- सपने यदपि कि मायात्मक हैं लेकिन जब तक उन्हें देखा जाता है उससे उनके सत्य होने की अनुभूति होती है. वे उसी समय तक सत्य प्रतीत होते है जब तक मनुष्य स्वप्न देखता है. ऐसे में इसे पूर्ण रूप से मायात्मक या मिथ्या भी नहीं कहा जा सकता है.
४-सपने मायात्मक हैं लेकिन इनमे सत्य के कुछ अंश होते हैं क्योकि सपने शुभ या अशुभ घटनाओं को बताने वाले होते हैं. श्रुतियों में सपनों का वर्णन है. सपने में हाथी की सवारी करना शुभ होने की सूचना देता है जबकि गधे कि सवारी करना अशुभ की सूचना देता है. यदि आप सपने में अपने पूर्वजों को आशीर्वाद देते हुए प्रसन्न चित्त मुद्रा में देखते हैं तो यह शुभ स्वप्न माना जाता है. ऐसे निश्चित शुभाशुभ सपनों का वर्णन वाल्मीकि रामायण सहित अनेक पुराणों में भी किया गया है. वाल्मीकि रामायण में त्रिजटा और लक्ष्मण इत्यादि के शुभाशुभ सपनों का वर्णन मिलता है.
5-साधकों द्वारा मन्त्र आदि के जप से या ईश्वर की उपासना से जो सपने प्रकट होते हैं उनमे निश्चित सत्य का अंश होता है. ऐसा देखा जाता है कि स्त्री की प्राप्ति के लिए किये गये अनुष्ठान के बाद यदि सपने में स्त्री आती है तो उस अनुष्ठान के सच होने की सूचना मिलती है. लेकिन सपने में जो स्त्री दिखती है वह वास्तविक नहीं होती है इसलिए सपने को मिथ्या या मायात्मक कहा गया है.
6-सपने की रचना करने वाला मनुष्य की आत्मा ही होता है इसलिए सपने का शुभ और अशुभ फल मनुष्य द्वारा किये गये वर्तमान जन्म के या पूर्व जन्म के किये गये शुभाशुभ कर्मों पर ही आश्रित होता है. यह स्वयं ज्योति: स्वरूप आत्मा सपने में अपने वासनामय देह को रच कर इस लोक और परलोक दोनों को देखता है क्योकि वह दोनों के मध्य में स्थित है. यह जैसे साधन से सम्पन्न होता है (अर्थात जैसे इसके शुभाशुभ कर्म होते हैं या अवचेतन में संचित संस्कार होते हैं ) वैसे ही सपने उत्पन्न होते हैं और जीव सपने में सुख या दुःख देखता है.
7- ईश्वर मनुष्य के सपनों की सृष्टि नहीं करता या उसका कारण नहीं होता. लेकिन इसका इंकार भी नहीं किया जा रहा है कि ईश्वर किसी को कोई सपना नहीं दिखा सकता है. वह सर्वशक्तिमान है और उसकी सर्वत्र स्थिति है.
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।
ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें रहता है और अपनी मायासे शरीर रूपी यन्त्रपर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियोंको भ्रमण कराता रहता है. इस कारण से हृदय देश स्थित ईश्वर कभी किसी साधक या उपासक को मार्गदर्शन करने के लिए सपने दिखा सकता है. भक्तों को देव दर्शन होते हैं जिससे उनका मार्ग प्रशस्त होता है. भगवान या देवता साधकों को सपने में मन्त्र की प्राप्ति, श्रुतियों के रहस्य का उद्घाटन, परे के लोकों का दर्शन, किसी विद्या की प्राप्ति इत्यादि कराते हैं. ऐसे सपने व्यक्ति के पुण्यों पर निर्भर करता है. सभी को भगवान या देवता ऐसे सपने नहीं दिखाते हैं.
आचार्य रामानुज का मत-
सबसे बड़े वैष्णव आचार्य रामानुज का मत है कि स्वप्न की रचना जीवात्मा नहीं कर सकता क्योंकि रथपुष्करिणी इत्यादि विचित्र माया परमपुरुष की ही सृष्टि हो सकती है. स्वप्न में मनुष्य के अनुभव में न आने वाली साधारण चीजों का दर्शन होता है. स्वप्न में रथ, घोड़े, मार्ग इत्यादि की सृष्टि करता है जो उस काल मात्र में ही समाप्त हो जाती हैं. ऐसी आश्चर्यमय सृष्टि सत्य संकल्प परमात्मा ही कर सकता है. जीव सत्य संकल्प होते हुए भी सांसारिक दशा में इसके भीतर ईश्वर के गुण अभिव्यक्त नहीं होते इसलिए जीव स्वप्न में आश्चर्यजनक ऐसी सृष्टि नहीं कर सकता है. दूसरी बात है कि सपने में मनुष्य के अभ्युदय और पतन का संकेत मिलता है इसलिए भी सपने जीवात्मा द्वारा संकल्पित नहीं हो सकते.

