वैष्णव प्रपंच के अनुसार तिरुपति मन्दिर के लार्ड वेंकटेश्वर ने शादी में जो ऋण लिया था उसको पूरा करने की अवधि 1000 वर्ष या एक युग मानी गई है. यह वैष्णवों का लम्बा प्लान था कि हिन्दुओं से पूरे कलियुग भर कर्ज वसूलेंगे. वैष्णव प्रपंच शास्त्र में भगवान वेंकटेश्वर द्वारा शादी के लिए उधार ली गई राशि 1.4 मिलियन राममुद्रा सिक्के बताई गई है. वैष्णव प्रपंच शास्त्र के अनुसार कुबेर से ऋण समझौते में यह तय हुआ कि यह ऋण भगवान भक्तों से वसूलेंगे. भगवान वेंकटेश्वर को अपने भक्तों की मदद से इस युग के अंत तक ऋण चुकाना होगा. सारे विष्णु और हिन्दू भक्त हर साल तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम को भारी मात्रा में दान इस कर्ज से मुक्ति के लिए देते हैं. जब तिरुपति के भगवान ही कर्जा में हैं और एक हजार साल से हिन्दू उनका कर्जा भर रहे हैं तो हिन्दू बेचारे कर्जा में कैसे न रहें ? शादी तिरुपति बाला जी ने की, उनकी शादी में दारु वैष्णव पिए, बच्चे उनके हुए और कर्ज हम भक्त भर रहे हैं. ये विश्व के पहले ऐसे भगवान हैं जो गरीबों को कुछ दे नहीं रहे हैं, गरीबों से रूपये वसूल रहे हैं. किस लिए वसूल रहे हैं? बल्लभाचार्य की तरह शादी करके अपने ढेर सारे बच्चे पैदा करने के लिए.
तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम में हर वित्त वर्ष 700 करोड़ से 1000 करोड़ की राशि जमा होती है. इसमें अन्य सोने इत्यादि के दान, भूमि के दान अलग हैं. तिरुमाला मंदिर का निर्माण 600 ईस्वी में किया गया था. स्वाभाविक है कि तब से लेकर अब तक जमा हुआ ब्याज मूलधन से कई गुना ज्यादा होगा. कुबेर एक चतुर ऋणदाता थे. उन्हें पता था कि भगवान वेंकटेश्वर की कोई आय नहीं है, कोई नौकरी नहीं है लेकिन ये चतुर ठग हैं. ये सभी वैष्णवों को रिप्रेजेंट करते हैं. विष्णु वेकटेश्वर की ठगी क्वालिटी को जानकर बनिया कुबेर ने ऋण देने का जोखिम उठाया था. विष्णु के भक्त वैष्णवों ने अपना प्रपंच फैलाया और उस प्रपंच में हिन्दू भक्त फंस गये और कर्ज की अदायगी करने लगे. उस कर्ज की अदायगी में वैष्णवों ने अपना साम्राज्य बना लिया और यह साम्राज्य इतना बड़ा है जितनी बड़ी भारत की अर्थव्यवस्था है.
एक हजार साल वैष्णवों का कोष भरते भरते हिन्दू गरीब होता गया. हिन्दू गरीब ही नहीं हुआ, रामानुजाचार्य के बाद ग्यारहवी शदी से हिन्दू गुलाम होता गया और लगभग 800 साल गुलाम रहा. लगभग 650 साल मुगलों का गुलाम रहा और डेढ़ सौ साल ब्रिटिश का गुलाम रहा. भारत को स्वतन्त्रता उसके बाद मिली और देश की जनता के दिन फिरने लगे. जब यह अभी अपने पहले स्टेज को पार ही कर रहा था कि गुलाम बनाने वाली बाबाओं की रिजीम ने बिगुल फूंक दिया और कांग्रेस सत्ता से चली गई. 60 साल भारत के उत्थान के लिए कांग्रेस ने कार्य किया और उसमे कुछ ऋण भी लिए जो लगभग 55 लाख करोड था. हिंदुत्व फासिस्ट्स सत्ता में आये और कर्ज दस साल में 55 लाख करोड़ से बढ़ कर 185 लाख करोड़ हो गया है. प्रति व्यक्ति कितना कर्जा है? औसतन लगभग डेढ़ लाख का कर्ज हर इंडियन पर है. यह रामराज की अर्थव्यवस्था है जो देश की सभी महत्वपूर्ण सम्पत्तियां (पोर्ट, एयरपोर्ट, खानें, तेल , रेल इत्यादि ) दो गुजराती बनियों को बेचने के बाद शेष बची है.

