श्री वेंकटेश्वर भगवान के जन्म के विषय में कोई कथा नहीं है, ये स्वयंभू हैं. दक्षिण भारतीय लोगों के मतानुसार श्री वेंकटेश्वर भगवान ने किसी स्त्री से जन्म नहीं लिया था. लेकिन उनकी पालक एक निःसन्तान स्त्री माता वकुला देवी को माना गया है. श्री वेंकटेश्वर भगवान का अवतरण उस समय हुआ था जब महर्षि भृगु ने त्रिदेवों की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु के वक्ष पर जोरदार लात मारी थी. भगवान विष्णु के वक्ष में लक्ष्मी रहती हैं. इस प्रहार से माता लक्ष्मी को चोट लगी और वे क्रोधित हो गईं और बैकुण्ठ छोड़कर चली गई. माता लक्ष्मी के जाने के बाद भगवान विष्णु भी श्रीहीन हो गए. क्रोधित लक्ष्मी जी भेष बदलकर पृथ्वी पर आकर बस गईं.
भगवान विष्णु ने उस समय वेंकटेश्वर श्रीनिवास के रूप में पृथ्वी पर प्रकट होने का निश्चय किया ताकि लक्ष्मी जी को खोज सकें. उन्होंने एक निर्धन निसंतान स्त्री वकुला को मातृत्व का सुख देने के लिए यह किया था. वकुला ने इन्हें श्रीनिवास नाम दिया था. पुराण के अनुसार वकुला पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार में उनकी पालक माता यशोदा थी. भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें उनके अंतिम समय में आश्वासन दिया कि अगले जन्म में वे उनके पुत्र रूप में पुन: उत्पन्न होंगे और वे उनका विवाह भी देख पाएंगी. जिस कारण यशोदा ने वकुला रूप में दोबारा जन्म लिया.
लक्ष्मी जी की खोज के दौरान, भगवान विष्णु की मुलाकात पद्मावती से हुई, जो तिरुमाला की सात पहाड़ियों के राजा की बेटी थीं. दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला किया. पद्मावती के पिता ने दुल्हन की भारी कीमत मांगी. शादी करने के लिए गरीबभगवान विष्णु ने धन के देवता और यक्षों के राजा कुबेर से धन मांगा और कहा कि वे कलयुग के अंत तक उनका धन ब्याज समेत लौटा देंगे. लोन पूरा करने में भक्त मदद करते हैं और मन्दिर को खूब चढावा चढाते हैं. विष्णु जी यह व्याज कलियुग के अंत तक लौटायेंगे. कुबेर से लिए हुए धन से श्रीनिवास भगवान ने उनसे विवाह कर लिया. विवाह के पश्चात् भगवान वेंकटेश्वर ने वकुला को उनके पूर्व जन्म के विषय में बताया और उसे मुक्ति प्रदान किया. वकुला ने बाल्यावस्था में किसी गलती के कारण बाल वेंकटेश्वर को एक छड़ी से पीटा था जिससे उनको ठुड्डी पर चोट लग गई थी. उसी कारण तिरुपति बाला जी की मूर्ति पर शुक्रवार को चन्दन का लेप किया जाता है ताकि उसकी पीड़ा कम हो जाए.

