सभी हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय चाहे वो शैव हों, वैष्णव या शाक्त धर्म के सम्प्रदाय हों, उनकी स्थापना जिस गुरु ने की उसने प्रस्थानत्रयी पर भाष्य लिखा. उपनिषद, ब्रह्म सूत्र और भगवद्गीता को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है. सम्प्रदाय को स्थापित करने वाले आचार्यों ने भाष्य लिख कर ही अपने धर्म दर्शन को पुष्टि किया. इस प्रकार आप देखेंगे कि शास्त्र (श्रुति) ही सबका आधार है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शास्त्र के वचन आप्त वचन हैं, उनका किसी काल में बाध नहीं होता. उदाहरण के लिए वैष्णवों के कुल चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं. इन सम्प्रदायों से ही कालान्तर में अनेक गौड़ वैष्णव सम्प्रदाय विकसित हुए हैं. वे सम्प्रदाय जो मध्य युग के अंतिम काल खंड में प्रकट हुए उनमें कोई मौलिकता नहीं है. ज्यादातर सम्प्रदाय पौराणिक हैं और कथावचन तथा भक्ति में कीर्तन-नाच इत्यादि करते हैं.
(१) श्री सम्प्रदाय- वैष्णवों का सबसे शक्तिशाली सम्प्रदाय रामानुज का ही सम्प्रदाय है. इस सम्प्रदाय की आद्य प्रवर्तिका विष्णुपत्नी महालक्ष्मीदेवी और प्रमुख आचार्य रामानुजाचार्य हैं. रामानुजाचार्य, यामुनाचार्य के शिष्य थे. इनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय ही रामानुजसम्प्रदाय या श्री वैष्णव सम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है. इन्होने ब्रह्म सूत्र पर “श्री भाष्य लिखा” साथ में सभी उपनिषदों पर भी भाष्य लिखा. इसके इतर छोटे प्रकरण ग्रन्थ और स्तुतियाँ भी लिखी. इनके अनेक दिग्गज शिष्य थे जिनमे वेदांत दीक्षित और लोकाचार्य प्रमुख हैं. वेदांत दीक्षित श्री वैष्णव सम्प्रदाय के दिग्गज आचार्य माने जाते हैं.
(२) ब्रह्म सम्प्रदाय- इसके आद्य प्रवर्तक चतुरानन ब्रह्मादेव और प्रमुख आचार्य माधवाचार्य हुए. जो वर्तमान में माध्वसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है. इन्होने भी ब्रह्मसूत्र पर माध्व भाष्य लिखा और पौराणिक थे. इन्होने भागवतपुराण पर भी “भागवत तात्पर्य निर्णय” टीका लिखी.
(३) रुद्र सम्प्रदाय- इसके आद्य प्रवर्तक देवाधिदेव महादेव और प्रमुख आचार्य श्री विष्णुस्वामी हुए, इसी से इस संप्रदाय का नाम विष्णुस्वामीसंप्रदाय हुआ, इसी परंपरा में आगे चलकर वल्लभाचार्य हुए जिन्होंने वल्लभसम्प्रदाय या पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय स्थापित किया. इन्होने भी ब्रह्मसूत्र पर अणुभाष्य लिखा और भागवत पुराण पर ‘श्री सुबोधिनी’ टीका लिखी साथ में पूर्व कांड जैमिनी धर्मसूत्रो पर भाष्य, तत्वार्थदीप निबंध, गायत्री भाष्य, मधुराष्टक इत्यादि स्तोत्र लिखे. ये प्रमुख रूप से पुराणवादी थे.
(४) कुमार संप्रदाय- इसके आद्य प्रवर्तक सनतकुमार गण माने गये हैं और प्रमुख आचार्य निम्बार्काचार्य हुए जिन्होंने निम्बार्कसम्प्रदाय की स्थापना की थी. निम्बार्काचार्य ने ब्रह्मसूत्र, उपनिषद और गीता पर अपनी टीका लिखकर अपना दर्शन स्थापित किया. इनकी ‘वेदान्त-पारिजात-सौरभ’ टीका सम्प्रदाय में प्रसिद्ध है.
इसके अलावा मध्यकालीन उत्तरभारत में ब्रह्म(माध्व) संप्रदाय के अंतर्गत ब्रह्ममाध्वगौड़ेश्वर(गौड़ीय) संप्रदाय हुआ जिसके प्रवर्तक आचार्य चैतन्यदेव महाप्रभु हुए जिन्होंने कोई ग्रन्थ नहीं लिखा. उनकी लिखी एक मात्र पुस्तक शिक्षाष्टक है जिसमे आठ श्लोक हैं. उन्होंने अपने गौडीय सम्प्रदाय को स्थापित करने के लिए अपने शिष्यों को ग्रन्थ लेखन में लगाया जिनमे सनातन गोस्वामी और जीव गोस्वामी प्रमुख थे. सनातन गोस्वामी ने श्री बृहत् भागवतामृत, वैष्णवतोषिणी तथा श्रीकृष्णलीलास्तव, हरिभक्तिविलास लिखा और भक्तिरसामृतसिंधु की रचना जीव गोस्वामी के साथ की थी. इनका प्रमुख ग्रन्थ चैतन्य की चरितावली और भागवत पुराण है.
श्री(रामानुज) संप्रदाय के अंतर्गत रामानंदी संप्रदाय भी प्रकट हुआ जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीरामानंदाचार्य हुए. रामान्दाचार्य ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को भक्ति का उपदेश दिया. रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने रामायणी पन्थ में श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक राम की महिमा को पहुँचाया. उनकी अन्य रचनाएँ – विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया. रामायणी पन्थ उत्तर भारत में काफी तेजी से आगे बढ़ा. हिंदी बेल्ट में प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में इस पन्थ के अनुयायी सबसे ज्यादा हैं. कुछ कलियुग में स्वामी नारायण जैसे कल्ट भी प्रकट हुए जो अभी खुद को बढ़ा रहे हैं. स्वामी नारायण जैसे कल्ट को गुजराती बनियों का काफी समर्थन है और उनके काले धन का बड़ा हिस्सा इस कल्ट को प्राप्त होता है. हालिया में इस कल्ट ने रामायणी सम्प्रदाय के खिलाफ कार्य करते हुए हनुमान जी से अपने कल्ट गुरु की चरण बंदना करवाई थी. इससे काफी बवाल हुआ था.

