तिरुमाला देवस्थानम् में श्री वैष्णव सम्प्रदाय के वैष्णव ही लड्डू बनाते हैं और लड्डू के लिए सामग्री का संग्रह करते हैं. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि इस सम्प्रदाय के प्रमुख पुजारी और प्रमुख मेम्बर्स को घी और अन्य वस्तुओं की काला बाजारी के बारे में पता था और मिलीभगत हो सकती है. मन्दिर में लड्डू बनाने वाले और उसकी सामग्री का संग्रह करने वाले प्रमुख रूप श्री सम्प्रदाय के ब्राह्मण पुजारी ही हैं. सम्प्रदाय के 600 से ज्यादा लोग इसकी मार्केटिंग करते हैं. सैकड़ो ट्रक माल रोज उतरता है, उसकी देख रेख करने वाले भी यही हैं. नंदिनी घी शुद्ध गाय का घी था और उसे हटाकर जो नया ठेका दिया गया उसके बारे में इन्हें पूरी जानकारी थी. इन्होने उसका विरोध क्यों नहीं किया? जब 350 रूपये किलो घी खरीदा गया तो क्या उन्हें इसकी खराब क्वालिटी के बारे में जानकारी नहीं थी? किस बाजार में इतना सस्ता घी मिल सकता है? हम 680 रूपये किलो घी का मन्दिर में दीप जलाने के लिए प्रयोग करते हैं और लड्डू से करोड़ों कमाने वाला वैष्णव मन्दिर 350 रूपये किलो के घी में भगवान का प्रसाद बना कर हिन्दुओं से रूपये कमा रहा है?
लड्डू नैवेद्यम मिठाई का प्रसाद पहली बार 2 अगस्त, 1715 को चढ़ाया गया था, लेकिन इसने 1940 में ही वर्तमान लड्डू का रूप लिया और बिजनेस की शुरुआत भी हुई. मंदिर के 2016-17 के बजट में मंदिर बोर्ड ने बताया कि प्रसाद से उनका राजस्व 1,000 करोड़ रुपये से अधिक आया और लड्डू की बिक्री से 175 करोड़ रुपये हुई. औसतन लड्डू की बिक्री 200 तक पहुंच जाती है लेकिन मीडिया के अनुसार कभी कभी यह 500 करोड़ तक भी होती है. मांग के अनुसार प्रतिदिन 5,000 कल्याण लड्डू बनाये जाते हैं जो विशेष कल्याणोत्सवम सेवा टिकट खरीदने वाले भक्तों को दिए जाते हैं. यह लड्डू 750 ग्राम का विशाल लड्डू होता है. 750 ग्राम स्पेशल लड्डू में 23.5 ग्राम काजू, 12.5 ग्राम किशमिश, 8.2 ग्राम बादाम और 6.2 ग्राम मिश्री होती है और उसकी नमी की मात्रा 12% होती है. यह लड्डू 100 रूपये का मिलता है. इसके अतिरिक्त लगभग 2-3 लाख प्रोक्तम लड्डू 175 ग्राम के लड्डू सामान्य बिक्री के लिए बनाते हैं. यह मन्दिर से ज्यादा मिठाई की दुकान है और सब कुछ यहाँ विशुद्ध व्यापार है. दर्शन से लेकर प्रसाद तक सब रूपये से प्राप्त होता है. वैष्णव सदैव व्यापार में माहिर थे और प्रोपगेंडा में इनका कोई सानी नहीं है. इनकी व्यापारिक बुद्धि तो बनियों को भी मात देती है, सम्भवत: इसीलिए बनिया वैष्णव बन जाते हैं.

स्पष्ट है मन्दिर में वस्तुओं की सप्लाई भी मोटे मुनाफे का बिजनेस है और नेताओं और व्यापारियों की गिद्ध दृष्टि मन्दिर पर है. साथ में इसका बिजनेस बड़ा है इसलिए बड़े अधर्मी लोग इसको भी कब्जे में करने की फ़िराक में है. हमे नहीं पता कि मन्दिर की अन्य बिजनेस गुप्त गतिविधियाँ क्या हैं क्योकि वैष्णव इस प्रकार के कार्य मध्य युग से करते आ रहे हैं.

ट्रस्ट ने स्पष्ट किया है कि मन्दिर पूर्ण रूप से श्री-वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों द्वारा चलाया जाता है. आपको बता दें कि श्री वैष्णव/श्री वैष्णववाद की स्थापना का श्रेय १०वीं शताब्दी के एक पुजारी नाथमुनि को दिया जाता है लेकिन इसके प्रवर्तक यमुनाचार्य और 11वीं शदी में पैदा हुए रामानुजाचार्य हैं. ये प्रमुख रूप से पौराणिक थे और वेद विरुद्ध पांचरात्र तांत्रिकों के सिद्धांत को इन्होने आगे बढ़ाया. तिरुपति मन्दिर की पूजा और सेवा अर्चना प्रमुख रूप से तांत्रिक पांचरात्रियों के लिखे कुछ संहिता ग्रन्थों पर ही आधारित है.

