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ज्योतिष में द्रेष्काण के स्वरूप का कुछ इस तरह से वर्णन किया गया है ..

द्रेष्काण – राशि के तृतीय भाग (३० = १०९ ) को द्रेष्काण या ट्रेक्काण कहते हैं । एक राशि में तीन द्रेष्काण होते हैं। राशि का प्रथम द्रेष्काण उसी राशि का, द्वितीय द्रेष्काण उससे सुत (पंचम) राशि का और तीसरा द्रेष्काण शुभ (नवम) राशि का होता है।

सिंह राशि का अन्तिम द्रेष्काण (तृतीय द्रेष्काण), मेष और धनु राशियों के प्रथम और अन्तिम द्रेष्काण, कन्या राशि का मध्य देष्काण, मिथुन राशि का मध्य और अन्तिम द्रेष्काण आयुधसंज्ञक है। वृश्चिक राशि का मध्य (द्वितीय) द्रेष्काण पाश संज्ञक है। मकर के प्रथम द्रेष्काण को निगल कहते हैं। सिंह और कुम्भ राशियों में प्रथम द्रेष्काण और तुला राशि में मध्य द्रेष्काण की गृद्ध संज्ञा है। वृष राशि के अन्तिम (तृतीय) द्रेष्काण को विहग कहते हैं। कर्क राशि के प्रथम द्रेष्काण को कोल (शूकर) कहते हैं

वृश्चिक राशि के प्रथम, मीन-कर्क के तृतीय द्रेष्काण को अहि (सर्प) कहते हैं। मेष और वृष राशि के द्वितीय, सिंह राशि के प्रथम और वृश्चिक राशि के तृतीय द्रेष्काण को चतुष्पाद कहते.  यदि लग्न में ये द्रेष्काण हों तो जातक धनहीन, क्रूरमना और दरिद्र होता है.
द्वन्द्व (द्विस्वभाव) राशियों में प्रथम, द्वितीय और तृतीय द्रेष्काण क्रमशः अधम, सम और शुभ कहलाते हैं। चर राशि में इसके विपरीत क्रम से संज्ञाएँ होती हैं अर्थात् चर राशि के प्रथम द्रेष्काण को शुभ, द्वितीय द्रेष्काण को सम और अन्तिम द्रेष्काण को अधम कहते हैं। स्थिर राशि के तीनों द्रेष्काणों की क्रमशः अधम, शुभ और सम संज्ञाएँ हैं। लग्नस्थ द्रेष्काण के नामानुसार उसके फल भी आचार्यों ने कहे हैं || १४ ||
लग्नोदित द्रेष्काण का स्वामी अपने वर्ग में हो, स्वोच्च, स्वमित्र की राशि में स्थित हो, शुभग्रह के साथ युत हो, लग्नोदित द्वादशांश के स्वामी और लग्नोदित होरा का स्वामी भी उक्त स्थिति में स्थित होकर बलवान् हो तो जातक गुणवान्, कीर्तिमान् और राजा के समान भोग युक्त होता है ॥ 

BPS-
हाथमें फरसा लिये हुए काले रंगका पुरुष , जिसकी आँखें लाल हों और जो सब जीवोंकी रक्षा करनेमें समर्थ हो , मेषके प्रथम द्रेष्काणका स्वरूप है । प्याससे पीडित एक पैरसे चलनेवाला , घोडे के समान मुख , लाल वस्त्रधरी और घडेके समान आकार – यह मेषके द्वितीय द्रेष्काण का स्वरूप है । कपिलवर्ण , क्रूरदृष्टि , क्रूरस्वभाव , लाल वस्त्रधारी और अपनी प्रतिज्ञा भङ्ग करनेवाला – यह मेष के तृतीय द्रेष्काण का स्वरूप है । भूख और प्याससे पीडित , कटे – छँटे घुँघराले केश तथा दूधके समान धवल वस्त्र – यह वृषके प्रथम द्रेष्काण का स्वरूप है । मलिनशरीर , भूखसे पीडित , बकरे के समान मुख और कृषि आदि कार्यों में कुशल – यह वृष के दूसरे द्रेष्काण का रूप है । हाथीके समान विशालकाय , शरभ के समान पैर , पिङ्गल वर्ण और व्याकुल चित्त – यह वृष के तीसरे द्रेष्काणका स्वरूप है । सूई से सीने – पिरोनेका काम करनेवाली , रूपवती , सुशीला तथा संतानहीना नारी , जिसने हाथको ऊपर उठा रखा है , मिथुन का प्रथम द्रेष्काण है । कवच और धनुष धारण किये हुए उपवन में क्रीडा करनेकी इच्छासे उपस्थित गरुड सदृश मुखवाला पुरुष मिथुन का दूसरा द्रेष्काण है । नृत्य आदिकी कला में प्रवीण , वरुणके समान रत्नोंके अनन्त भण्डार से भरा – पूरा , धनुर्धर वीर पुरुष मिथुन का तीसरा द्रेष्काण है । गणेशजीके समान कण्ठ , शूकरके सदृश मुख , शरभके – से पैर और वन में रहनेवाला – यह कर्कके प्रथम द्रेष्काण का रूप है । सिर पर सर्प धारण किये , पलाशकी शाखा पकडकर रोती हुई कर्कशा स्त्री – यह कर्कके दूसरे द्रेष्काणका स्वरूप है । चिपटा मुख , सर्प से वेष्टित , स्त्रीकी खोजमें नौकापर बैठकर जलमें यात्रा करनेवाला पुरुष – यह कर्कके तीसरे द्रेष्काणका रूप है ॥३५१ – ३५६॥

सेमलके वृक्षके नीचे गीदड और गीधको लेकर रोता हुआ कुत्ते – जैसा मनुष्य – यह सिंहके प्रथम द्रेष्काण का स्वरूप है । धनुष और कृष्ण म्रुघचर्म धारण किये , सिंह – सदृश पराक्रमी तथा घोडेके समान आकृति वाला मनुष्य – यह सिंहके दूसरे द्रेष्काण का स्वरूप है । फल और भोज्यपदार्थ रखनेवाला , लंबी दाढी से सुशोभित , भालू – जैसा मुख और वानरों के – से चपल स्वभाववाला मनुष्य – सिंहके तृतीय द्रेष्काणका रूप है । फूलसे भरे कलशवाली , विद्याभिलाषिणी , मलिन वस्त्रधारिणी कुमारी कन्या – यह कन्या राशिके प्रथम द्रेष्काण का स्वरूप है । हाथमें धनुष , आय – व्ययका हिसाब रखनेवाला , श्याम – वर्ण शरीर , लेखन कार्य में चतुर तथा रोएँसे भरा मनुष्य – यह कन्या राशिके दूसरे द्रेष्काणका स्वरूप है । गोरे अङ्गोपर धुले हुए स्वच्छ वस्त्र , ऊँचा कद , हाथमें कलश लेकर देवमन्दिरकी ओर जाती हुई स्त्री – यह कन्या राशिके तीसरे द्रेष्काणका परिचय है ॥३५७ – ३५९॥

हाथमें तराजू और बटखरे लिये बाजारमें वस्तुएँ तौलनेवाला तथा बर्तन – भाँडोंकी कीमत कूतनेवाला पुरुष तुलाराशिका प्रथम द्रेष्काण है । हाथमें कलश लिये भूख – प्याससे व्याकुल तथा गीधके समान मुखवाला पुरुष , जो स्त्री – पुत्रके साथ विचरता है , तुलाका दूसरा द्रेष्काण है । हाथमें धनुष लिये हरिनका पीछा करनेवाला , किन्नरके समान चेष्टवाला , सुवर्णकवचधारी पुरुष तुलाका तृतीय द्रेष्काण है । एक नारी , जिसके पैर नाना प्रकारके सर्प लिपटे होनेसे श्वेत दिखायी देते हैं , समुद्रसे किनारेकी ओर जा रही है , यही वृश्चिकके प्रथम द्रेष्टकाणका रूप है । जिसके सब अङ्ग सर्पोंसे ढके हैं और आकृति कछुएके समान है तथा जो स्वामीके लिये सुखकी इच्छा करनेवाली है ; ऐसी स्त्री वृश्चिकका दूसरा द्रेष्काण है । मलयगिरिका निवासी सिंह , मुखाकृति कछुए – जैसी है , कुत्ते , शूकर और हरिन आदिको डरा रहा है , वही वृश्चिकका तीसरा द्रेष्काण है ॥३६० – ३६२॥

मनुष्य के समान मुख , घोडे – जैसा शरीर , हाथमें धनुष लेकर तपस्वी और यज्ञोंकी रक्षा करनेवाला पुरुष धनुराशि का द्रेष्काण है । चम्पापुरुष के समान कान्तिवाली , आसन पर बैठी हुई , समुद्रके रत्नों को बढानेवाली , मझोले कदकी स्त्री धनु का दूसरा द्रेष्काण है । दाढी – मूँछ बढाये आसन पर बैठा हुआ , चम्पा पुष्पके सदृश कान्तिमान्‌ , दण्ड , पट्ट – वस्त्र और मृगचर्म धारण करने वाला पुरुष धनु का तीसरा द्रेष्काण है । मगर के समान दाँत , रोएँसे भरा शरीर तथा सूअर – जैसी आकृति वाला पुरुष मकर का प्रथम द्रेष्काण है । कमलदल के समान नेत्रोंवाली , आभूषण – प्रिया श्यामा स्त्री मकरका दूसरा द्रेष्काण है । हाथमें धनुष , कम्बल , कलश और कवच धारण करने वाला किन्नर के समान पुरुष मकर का तीसरा द्रेष्काण है ॥३६३ – ३६६॥

गीधके समान मुख , तेल , घी और मधु पीने की इच्छा वाला , कम्बलधारी पुरुष कुम्भ का प्रथम द्रेष्काण है। हाथ में लोहा , शरीरमें आभूषण तथा मस्तक पर भाँड ( बर्तन ) लिये मलिन वस्त्र पहनकर जली गाडी पर बैठी हुई स्त्री कुम्भका दूसरा द्रेष्काण है । कानमें बडे – बडे रोम शरीरमे श्याम कान्ति , मस्तक पर किरीट तथा हाथमें फल – पत्र धारण करनेवाला बर्तनका व्यापारी कुम्भका तीसरा द्रेष्काण है । भूषण बनानेके लिये नाना प्रकार के रत्नोंको हाथमें लेकर समुद्रमें नौका पर बैठा हुआ पुरुष मीन का प्रथम द्रेष्काण है । जिसके मुखकी कान्ति चम्पाके पुष्पके सदृश मनोहर है , वह अपने परिवारके साथ नौका पर बैठकर समुद्रके बीचसे तट की ओर आती हुई स्त्री मीन का दूसरा द्रेष्काण है। गङेढके समीप तथा चोर और अग्निसे पीडित होकर रोता हुआ , सर्पसे वेष्टित , नग्न शरीरवाला पुरुष मीन राशिका तीसर द्रेष्काण है । इस प्रकार मेषादि बारहों राशि का तीसरा द्रेष्काण है । इस प्रकार मेषादि बारहों राशियों में होनेवाले छत्तीस द्रेष्काणांश के रूप क्रमसे बताये गये हैं । मुनिश्रेष्ठ नारद ! यह संक्षेपमें जातक नामक स्कन्ध कहा गया है। अब लोक – व्यवहारके लिये उपयोगी संहितास्कन्धका वर्णन सुनो – ॥३६७ – ३७०॥ ( पूर्वभाग द्वितीय पाद अध्याय ५५ )