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प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की पंद्रहवीं तिथि अमावस्या कहलाती है. अमावस्या अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है, वैसे तो मांगलिक कार्य के लिए यह अशुभ तिथि है परंतु पितरों की पूजा के लिए सबसे प्रशस्त तिथि है. इस बार भाद्रपद माह की अमावस्या सोमवार को पड़ रही है, इसलिए ये सोमवती अमावस्या कही जायेगी. सोमवती अमावस्या में स्नान, तर्पण, श्राद्ध, दान इत्यादि अनंत शुभफल देने कहा गया है. भाद्रपद की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या और कुशग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी के नाम से भी जाना जाता है. इस अमावस्या में ही कुश ग्रहण किया जाता है अर्थात लोग साल भर के लिए पूजा-अनुष्ठान या श्राद्ध कराने के लिए कुशा को उखाड़ते हैं और पूजा करके घर लाते हैं. कुश विष्णु जी के रोम हैं इसलिए हिन्दू धर्म में इसका पूजा में बहुत महत्व है. भाद्रपद अमावस्या के कुछ समय बाद ही पितृ पक्ष की शुरुआत भी हो जाती है. अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है और सोमवार हो तो यह और भी उत्तम तिथि बन जाती है. कुशोत्पाटिनी या पिठौरी अमावस्या 2 सितम्बर को सोमवार के दिन पड़ रही है. इस दिन भगवान विष्णु और इष्ट देवता की पूजा-अर्चना करने से शुभ फलों की प्रप्ति होती है. अमावस्या पर पवित्र नदी में स्नान, पीपल की पूजा आवश्य करना चाहिए. भाद्रपद अमावस्या के दिन देवी दुर्गा समेत 64 देवियों की आटे की आकृति बनाकर पूजा की जाती है. पिठोरी में पिठ का अर्थ है- आटा, जिसके कारण ही इसे पिठोरी अमावस्या कहा जाता है.

अमावस्या तिथि और मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि प्रारम्भ सितम्बर 02, 2024 को 05:21 AM बजे होगा और इस तिथि की समाप्ति सितम्बर 03, 2024 को 07:24  AM को होगा. ऐसे में अमावस्या 2 सितम्बर को ही मनाई जाएगी.
पिठोरी व्रत प्रदोष मूहूर्त 06:41 pm से 08:57 pm तक है जिसमे शिव और पार्वती कि पूजा प्रशस्त रहेगी.

अमावस्या पर पितरों कि पूजा से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है. अमावस्या के दिन सूर्य उदय से पहले स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ देना चाहिए. उसके बाद भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए और इसीदिन दोपहर के समय काला तिल, कुश और फूल डालकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी तर्पण किया जाता है. सोमवती अमावस्या के दिन महिलाएं विशेष रूप से पीपल वृक्ष की पूजा करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की मंगल कामना करती हैं. महिलाएं इस दिन पीपल के वृक्ष के चारों ओर 108 बार फेरी लगाकर कच्चे सूत का धागा वृक्ष के चारों ओर लपेटती हैं.