धर्म एक क्लिष्ट विषय है और इसकी उपलब्धि भी बहुत कठिन है। गौतम बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ होकर तथागत बन गये और उन्होंने धर्म की स्थापना करके सहस्रों उपदेश दिए। वे निरीश्वरवादी थे और भारत की वेदवाह्य नास्तिक परम्परा के पोषक बने, उन्होंने अनात्मवाद का दर्शन दिया। अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में गौतम बुद्ध ने उस सभी चीजो को मानना प्रारम्भ कर दिया था जिसका उन्होंने पूरी जिन्दगी खंडन किया था। महापरिनिर्वाण के दिन उन्हें इन्द्रादि सभी वैदिक देवता दिखने लगे थे और किसी वृद्ध की तरह ही उपावन पर क्रोधित हो गये और बोले -” मेरी आँखों के सामने खड़ा है, दूर हट, देखता नहीं मेरे समक्ष कितने देवता, गन्धर्व, पितृ इत्यादि खड़े हैं? मुझे देखने दे “। यह महापरिनिर्वाण सुत्त में लिखा है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि उन्हें तत्वज्ञान की पूर्ण उपलब्धि नहीं हुई थी। इस बात को स्पष्ट करने के लिए उनके द्वारा उपदेशित यह तिरोकुडडुसुतं दिया जा रहा है जिसमें उन्होंने मृतात्माओं को अन्न-जल प्रदान करने का निर्देश दिया है –
तिरोकुडडुसुतं
१- तिरोकुड्डेसु तिट्ठन्ति, सन्धिसिड्घाटकेसु च।
द्वाराबाहासु तिट्ठन्ति, आगन्तवान सकं घरं।
२- पहूते अन्नपानम्हि, खज्जभोजे उपट्ठिते।
न तेसं कोचि सरति, सत्तानं कम्मपच्चया।।
३- एवं ददन्ति ञातीनं, ये होन्ति अनुकम्पका।
सुचिं पणीतं कालेन, कप्पियं पान भोजनं।
इदं वो ञातीनं होतु सुखिता होन्तु ञातयो।।
४- ते च तत्थ समागत्वा, ञातिपेता समागता
पहूते अन्नपानम्हि सक्कच्चं अनुमोदरे।।
५- चिरं जीवन्तु नो ञाती, येसं हेतु मभामसे।
अम्हाकं च कता पूजा दायका च अनिफ्फला।।
६- न हि तत्थ कसी अत्थि, गोरक्खेत्थ न विज्जति।
वणिज्जा तादिसी नत्थि हिरञ्ञेन कायाक्कयं।।
१- जो प्रेत अपने पूर्व गृहों से आकर घरों की दीवारों के बाहर या दो घरों के मिलन स्थल पर या चौराहो पर आकर बैठे हुये हैं
२-वहाँ प्रभूत अन्न पान खाद्य भोज्य पदार्थ के उपस्थित रहने पर, अपने कर्मभोग के कारण, उन प्रेतों मे से कोई भी वहाँ से नहीं जाता।
३- ऐसे प्रेतों पर दया करने के लिये उनके जीवीत सम्बन्धी उन को उत्तम एवं रूचिकर भोजन से समय समय पर यह कहते हुये तृप्त करते हैं कि यह भोजन हमारे प्रेत ज्ञानियों की तृप्ति के लिये हो। इसको प्राप्त कर वे सुखानुभव करें।
४- वे ज्ञाति प्रेत वहाँ आकर उनका दिया हुआ उत्तम एवं प्रभूत रूचिकर भोजन प्राप्त कर उससे सन्तुष्ट होकर उस भोजन दान का अनुमोदन करते हैं-
५- ” हमारे ये सम्बन्धिजन चिरकाल तक जीवित रहें जिनकी कृपा से हमे यह प्रभूत रूचिकर भोजन मिल रहा है। दानदाता द्वारा की गई हमारी पूजा उसके लिये कभी निष्फल नहीं होगी।”
६- वहाँ प्रेत लोक में न कृषि है न दूध के लिये गौ, न धन अर्जन के लिये कोई व्यापार का साधन है, न सुवर्ण के माध्यम से किसी चीज क्रय या विक्रय है। वे प्रेत तो यहाँ के जीवित सम्बन्धियों द्वारा कृतदान से ही अपना जीवन यापन करते हैं।
ऐसे अनेक सुत्त हैं जिन पर अंग्रेज अनुवादकों ने लम्बे समय तक चर्चा नहीं की और हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने के लिए बुद्ध को वेदविरोधी, ब्राह्मण धर्म के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी और प्रोग्रेसिव बता कर प्रचार करते रहे.

