श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बस एक दिन शेष रह गया है. 26 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जायेगा. यह एक छोटा लेख प्रस्तुत हैं जो भारत के सांस्कृतिक विकास को कुछ एक बिन्दुओं द्वारा रेखांकित करता है. इसका आधार रामायण और कृष्णपंथी शाखा के वैष्णव ग्रन्थ हैं. वैष्णव धर्म ने न केवल अपने विकास में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों में भी बदलाव किया है बल्कि इसमें एक क्रन्तिकारी परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है. भागवत पुराण इस सन्दर्भ में काफी क्रांतिकारी ग्रन्थ है. यहाँ पांच बिन्दुओं द्वारा उसे चिन्हित करने की कोशिस की गई है. इससे यह भी स्पष्ट होगा की श्री कृष्ण को वैष्णव ‘भगवान स्वयं’ क्यों कहते हैं.
१- श्री राम ने हिन्दू धर्म के ऋषि महर्षियों कि आज्ञा का पालन किया. उन्होंने जो कहा वही उन्होंने किया. श्री राम ने आज्ञा पालन में अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया. श्री राम एक आज्ञाकारी पुत्र और आज्ञाकारी शिष्य थे. श्री कृष्ण ने अपने पिता को गलत करते हुए देख कर आज्ञा का पालन नहीं किया, उन्होंने बचपन में ही पिता को कर्म की श्रेष्ठता का उपदेश दिया और कहा कि इंद्र इत्यादि का तुम्हारे कर्मों पर कोई वश नहीं है. ये वर्षा के भी कारण नहीं हैं, क्योकि प्रकृति त्रिगुणात्मक है जिसके संयोग से प्रकृति के सभी कार्य होते हैं. मेघ रजोगुण की प्रेरणा से वर्षा करते हैं, इसमें इंद्र का क्या लेना देना?
रजसा चोदिता मेघा वर्षन्त्यम्बूनि सर्वत: ।
प्रजास्तैरेव सिध्यन्ति महेन्द्र: किं करिष्यति ॥ २३ ॥ -भागवत पुराण 10-24-23
२-श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं लेकिन वे मर्यादाएं मनु के धर्म के अनुसार हैं और जिसमे अंधविश्वास तथा रूढ़िवाद भी हैं. उसका आधार मूलभूत रूप से सामाजिक और नैतिक है, न की आध्यात्मिक है. श्री कृष्ण ने यदपि की मनु को अपनी विभूति बताया है और उनको उपदेश करने वाला भी कहा है अर्थात मनु ने जो धर्म स्थापित किया उसके उपदेशक मूलभूत रूप से कृष्ण ही हैं. क्योकि वे ही उपदेश हैं इसलिए द्वापर में उन्होंने अपने द्वारा स्थापित मर्यादाओं का ही अतिक्रमण किया और नई मर्यादाओं को स्थापित किया. इनमे प्रेम सबसे ऊपर स्थित था, प्रेम के लिए किसी भी पूर्व स्थापित मर्यादा या सामाजिक नीति नियम का अतिक्रमण किया जा सकता है. कृष्ण के लिए प्रेम सभी मर्यादाओं और आध्यात्मिकता का आधार था. श्री कृष्ण ने यह रुक्मिणीहरण करके दिखाया, उन्होंने कुबड़ी के प्रेम का निवेदन स्वीकार किया और उसके साथ दिन बिताये. मनु के धर्म के अनुसार किसी की कन्या का अपहरण जघन्य सामाजिक अपराध है. रासलीला प्रसंग में गोपियाँ अन्यों की पत्नियाँ थीं. जब रात्रि में गोपियाँ वन में रास के लिए प्रविष्ट हुई तो कृष्ण ने उन्हें आगाह किया और उन्हें अपने सामाजिक-पारिवारिक धर्म, नैतिकता की याद दिलाते हुए कहा कि परपुरुषगामन का सर्वत्र निषेध है (जुगुप्सितं च सर्वत्र ह्यौपपत्यं कुलस्त्रिय: ), तुम अपने घर लौट जाओ और अपने पतियों कि सेवा करो-
दु:शीलो दुर्भगो वृद्धो जडो रोग्यधनोऽपि वा ।
पति: स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी ॥ २५ ॥
अस्वर्ग्यमयशस्यं च फल्गु कृच्छ्रं भयावहम् ।
जुगुप्सितं च सर्वत्र ह्यौपपत्यं कुलस्त्रिय: ॥ २६ ॥
जब गोपियाँ आध्यात्मिक रास को सबसे ऊपर मानती है और वापस नहीं जाती. तब कृष्ण मुस्कुराते हुए उन्हें अंगीकृत करते हैं. तंत्र की गुह्य साधना के लिए यह आवश्यक था. कृष्ण ने एक कुलचारी की तरह उन्हें ठोक बजा कर देखा.
श्री राम में यह साहस नहीं था. उन्होंने साधु-महात्माओं और ऋषियों के उपदेश और उनकी सोच के अनुसार आचरण किया. श्री कृष्ण ने गृहस्थ धर्म का भी पूर्णरूपेण पालन किया.
३-श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जबकि श्री कृष्ण परम पुरुष है अर्थात साक्षात् ईश्वर हैं. श्री राम ने एक मर्यादित मनुष्य की तरह व्यवहार किया जो मनुस्मृति के अनुसार चलता है लेकिन श्री कृष्ण भगवान हैं, उनके सभी काम ईश्वरीय हैं. अद्वैत वेदांत के अनासक्ति कर्म योग का उपदेश करके श्री कृष्ण एक नए धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हैं. इस धर्म पर स्वयं पूरी जिन्दगी चलते हैं. श्री कृष्ण को जो कार्य करना है वो अपनी योगमाया से कर डालते हैं. श्री राम को अगस्त्य इत्यादि ऋषियों ने अस्त्र और शक्तियाँ प्रदान कर बलशाली बनाया. श्री कृष्ण सभी अस्त्रों के बाप दिव्य सुदर्शन चक्र ले कर अवतरित हुए थे. श्री राम ऋषियों को भगवन सम्बोधन करते हैं जबकि ऋषि महर्षि श्री कृष्ण को भगवान कहते हैं. श्री कृष्ण किसी महात्मा या ऋषि से आदेश लेते हुए नहीं दिखते, धर्म की स्थापना का उनका मिशन जन्म के साथ ही प्रारम्भ हो गया था. श्री राम को ऋषियों ने गढ़ा और तैयार किया, कृष्ण को किसी ने तैयार नहीं किया, वे पूर्ण ज्ञानी होकर ही जन्म ग्रहण किये थे. जन्म के साथ ही उन्होंने अपनी ईश्वरीय शक्तियों का प्रदर्शन किया. उनमे जन्म से ही अनंत ज्ञान, अनंत वीर्य, स्मृति, ऐश्वर्य और वैराग्य था. श्री कृष्ण जन्म से अनासक्त योगी थे. सभी कर्मों में वे अनासक्त थे. श्री राम में मनुष्यों का मोह प्रकट था, वे स्त्री के लिए रोते फिरे. कृष्ण ने स्वधाम जाते समय अपनी रानियों को अनासक्त भाव से त्याग दिया था, कोई विलाप नहीं किया.
४-श्री राम चरित्र का सबसे विश्वसनीय श्रोत वाल्मीकि रामायण है. इस रामायण में कई प्रसंगों में उनके ईश्वरीय होने की बात स्पष्ट रूप से कही गई है लेकिन उनके पुरुषोत्तम रूप को विशेष रूप से सामने रखा गया है. श्री कृष्ण चरित्र जिन वैष्णव ग्रन्थों में लिखा गया है उनमें कृष्ण प्रारम्भ से ही अलौकिक और पूर्ण ईश्वर के अवतार बताये गये हैं. उन्होंने सभी कार्य तीनो लोकों के नियंता के रूप में ही किया. युद्ध क्षेत्र में जयद्रथ वध के समय उन्होंने दिन में ही अपनी शक्ति गायत्री का आह्वान करके सायं का आयोजन कर दिया था. भगवद्गीता में गायत्री को उन्होंने अपना स्वरूप कहा है. श्रीराम मनु के धर्म की उच्चतम अभिव्यक्ति हैं, श्री कृष्ण वेदांत की उच्चतम अभिव्यक्ति हैं या यह कह सकते हैं वैदिक धर्म में जो कुछ भी उदात्त है वह उनमें पूर्णरूपेण अभिव्यक्त है. श्री कृष्ण सबकी सम्भावना हैं.
5-वाल्मीकि रामायण में राम के छिटपुट उपदेश प्राप्त होते हैं जिसमे नैतिकता और सदाचार की बातें हैं और आम जन की तरह एक विश्वास कि यह जीवन नश्वर है. श्री कृष्ण ने भगवद्गीता या उद्धवगीता का उपदेश एक अद्वैत में प्रतिष्ठित गुरु की तरह दिया. भागवत पुराण में अंतिम उपदेश में ज्ञान को सर्वोच्च स्थान प्रदान करते हुए कहा –
तपस्तीर्थं जपो दानं पवित्राणीतराणि च ।
नालं कुर्वन्ति तां सिद्धिं या ज्ञानकलया कृता ॥ ४ ॥
आध्यात्मिक ज्ञान अर्थात वेदांत ज्ञान के समक्ष, तप, तीर्थ, दान इत्यादि उसके एक छोटे अंश मात्र हैं. उन्होंने ज्ञानी को अपना सबसे प्रिय कहा “ज्ञानी प्रियतमोऽतो मे ज्ञानेनासौ बिभर्ति माम् ॥ ३ ॥”
श्री कृष्ण ज्ञानविरहित भक्ति का उपदेश नहीं करते. कहते है कि हे उद्धव ! तुम ज्ञान द्वारा ही अपने वास्तविक स्वरूप को जान सकते हो.
तस्माज्ज्ञानेन सहितं ज्ञात्वा स्वात्मानमुद्धव ।
ज्ञानविज्ञानसम्पन्नो भज मां भक्तिभावत: ॥ ५ ॥
पूर्व काल में ऋषि महर्षियों ने ज्ञान मार्ग से अपने आत्म स्वरूप को जाना और फिर मुझे जानकर मेरी अनन्य भक्ति से मुझे प्राप्त किया. इस तरह का उपदेश श्री राम कहीं भी करते नजर नहीं आते. बाली वध के प्रसंग में उसे नीति का उपदेश करते हुए राम काफी अतार्किक नजर आते हैं.

