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सनातन धर्म में जया पार्वती व्रत अविवाहित लडकियाँ पति की प्राप्ति के लिए करती हैं. यह एक बेहद पुण्यदायी व्रत माना जाता है. इसे गुजरात में गौरी व्रत के नाम से भी मनाया जाता है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर यह व्रत रखा जाता है. इसे अविवाहित महिलाएं मनचाहे वर की कामना के लिए रखती हैं और विवाहित महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं. भविष्योत्तर पुराण के अनुसार यह व्रत करने से स्त्रियां सौभाग्यवती और समृद्धशाली होती हैं और उन्हें विधवा होने का दु:ख भी नहीं भोगना पड़ता है. इस व्रत की कथा एक ब्राह्मण की पत्नी से भी जुड़ी हुई है, ऐसी मान्यता है कि उसने पति को श्राप से मुक्त करने के लिए गौरी की पूजा उपासना की थी. यह व्रत करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति के साथ विवाह से जुड़ी सभी समस्याओं का भी निवारण होता है. यह व्रत न कर पाने की स्थिति में श्रावण का मंगला गौरी व्रत करना चाहिए.

जया पार्वती व्रत मुहूर्त –

जया पार्वती व्रत त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है. त्रयोदशी की शुरुआत 18 जुलाई को रात 08 बजकर 44 मिनट पर होगी. और त्रयोदशी तिथि की समाप्ति 19 जुलाई को शाम 07 बजकर 41 मिनट पर होगी. पंचांग के अनुसार जया पार्वती व्रत 19 जुलाई, शुक्रवार के दिन रखा जाएगा.

पूजन कैसे करें –

जया पार्वती व्रत में टमाटर, मसाले, नमक और अषाढ़ में वर्जित सब्ज़ियाँ नहीं खाना चाहिए. व्रत के दौरान फल, दूध, दही, जूस, दूध से बनी मिठाइयां खा सकते हैं. यह व्रत एक दिन का भी किया जाता है और पांच दिवस का व्रत और पूजन भी एक पर्व की तरह होता है. इसमें व्रत पूर्वक देवी पार्वती की शिव जी के साथ पूजा की जाती है. देवी पार्वती और महादेव की मिट्टी की मूर्ति या तस्वीर चौकी पर स्थापित करना चाहिए. तदुपरांत शास्त्रीय विधि से पूजन करना चाहिए. अशास्त्रीय पूजन से उसका फल राक्षस और दुरात्मायें ले जाती हैं. इस व्रत में व्रत के पहले दिन , गेहूँ के बीज ( जवारा ) एक छोटे गमले में बोए जाते हैं और पूजा के स्थान पर रखे जाते हैं और उसकी पूजा की जाती है. एक धागे की गाँठ लगाकर नगला बनाया जाता है और उसे को सिंदूर ( कुमकुम ) से सजाया जाता है और देवी को अर्पित किया जाता है. पूजा में माता पार्वती को सोलह शृंगार की सामग्री अर्पित की जाती है. कुंवारी कन्याएं देवी पार्वती को सिन्दूर चढ़ाती हैं.

जया पार्वती कथा –

एक पौराणिक कथा है कि एक ब्राह्मण दंपत्ति था. वे भगवान शिव के भक्त थे. उनके जीवन में सब कुछ था, लेकिन एक संतान नहीं थी. वे प्रतिदिन मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते थे. दंपत्ति की भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें स्वप्न हुआ जिसमें कहा गया कि “मेरा शिव लिंग जंगल में एक निश्चित स्थान पर है. कोई भी व्यक्ति इसकी पूजा नहीं करता है. यदि आप वहां जाकर इसकी पूजा करते हैं, तो आपकी इच्छा पूरी होगी.” यह सुनकर ब्राह्मण दंपत्ति प्रसन्न हुए. वे जंगल में गए और उस स्थान का पता लगाया जहां भगवान शिव का शिव लिंग था. दंपत्ति को लिंग मिला और ब्राह्मण पूजा करने के लिए फूलों की तलाश में चला गया, जहां उसे एक सांप ने काट लिया और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया. उसकी पत्नी चिंतित हो गई क्योंकि उसका पति वापस नहीं आया और उसकी तलाश में निकल पड़ी. उसने अपने पति के लिए शिव पार्वती से बहुत प्रार्थना की. भगवान शिव ने ब्राह्मण महिला की सच्ची भक्ति देखी और उसके पति को होश में ला दिया. बाद में, दंपत्ति ने लिंग पर प्रार्थना की और उन्हें एक प्रतापी पुत्र हुआ.