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माता दुर्गा का ही अत्यंत प्रभावी एवं मंगलमय स्वरूप ही मंगला गौरी या मंगल चण्डी के नाम से प्रसिद्ध है. मंगल चण्डी सदा संसार का मंगल करती हैं और स्त्रियों की विशेष पूज्य हैं. मंगला गौरी देवी की स्तुति और पूजा सर्वप्रथम देवाधिदेव महादेव ने त्रिपुर दानव से युद्ध के समय मंगलवार को की थी. दूसरी बार इनकी पूजा ग्रहों के सेनापति मंगल की थी और ये उनकी इष्ट देवी भी हैं. मंगल की ईष्ट देवी होने के कारण भी मंगलचण्डी नाम प्रसिद्ध हुआ. देवी की तीसरी बार पूजा देव कन्याओं ने की थी और चौथी बार पृथ्वी लोक में सम्भ्रांत स्त्रियों ने इनकी पूजा आराधना की थी.

पुराण के अनुसार कुंडली में मंगल दोष हो तो मंगला गौरी की पूजा और व्रत से उसकी निवृत्ति होती है. मंगल महिलाओं के रज और मासिक धर्म का कारक है इसलिए मंगल के दु:स्थान में अर्थात 8वें और बारहवे होने या लग्न और चौथे स्थान पर होने पर इनकी पूजा से मंगल दोष खत्म होता है. देवी मंगलागौरी स्त्रियों के मांगल्य की रक्षा करती हैं इसलिए भी इनका नाम मंगला गौरी है. मंगलाचण्डी ही मंगला गौरी के रूप में पूजित होती हैं. सावन माह के प्रत्येक मंगलवार के दिन मां गौरी का पूजन किया जाता है और इस दिन मंगला गौरी व्रत रखने का विधान है. सुहागिन महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य की कामना से रखती हैं. इस साल सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई 2024 से होने वाली है, और 19 अगस्त 2024 के दिन इसका समापन होगा. इस माह में सोमवार को भगवान शिव की पूजा का विधान है जबकि दूसरे दिन मंगलवार मंगलागौरी का व्रत और पूजन का विधान है. इस बार चार मंगलवार सावन में है जिसमे मंगलागौरी पूजा की जायेगी. मंगला गौरी की पूजा के समय शिव द्वारा की गई उनकी स्तुति का पाठ करना चाहिए. इस स्तोत्र से किसी भी प्रकार के मंगल दोष के निवारण होता है. यह मंगल दोष तथा मातृ दोष के उपायों में से एक शक्तिशाली उपाय है.

मंगलचंडी देवी की पूजा एवं उनके स्तोत्र का पाठ मंगलवार को करने से लाभकारी होता है और मंगलवार के दिन पूजा करने पर मां अपने साधकों को मंगलमय सुख प्रदान करती हैं.

I श्री मंगलचंडि स्तोत्र II

मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके ऐं हुं हुं फट् स्वाहा।

ध्यानं-
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II
श्वेतचम्पकवर्णाभां सुनीलोल्पललोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे I
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने II

महादेव उवाच-

रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II


हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II


मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II

पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II


मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II


सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च शुभसुखप्रदे II

फलश्रुति-
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्  II


II इति श्री श्रीमद देवी भागवत पुराणे मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम्II