सनातन धर्म में देवता की परिक्रमा भी षोडशोपचार पूजा का आवश्यक अंग है. सृष्टि में सभी ग्रह प्रमुख देवता की परिक्रमा करते हैं, परमाणु में इलेक्ट्रॉन इत्यादि कण भी नाभि की परिक्रमा करते हैं. हिन्दू धर्म में पवित्र स्थलों के चारों ओर श्रद्धाभाव से चलना ‘परिक्रमा’ या ‘प्रदक्षिणा’ कहलाता है. दुनिया के सभी धर्मों में परिक्रमा का प्रचलन है. भगवान गणेश और कार्तिकेय ने भी परिक्रमा की थी जिसमे गणेश जी ने माता पार्वती और पिता शिव की परिक्रमा करके विजय प्राप्त किया था और सबसे बुद्धिमान देवता कहे गये. मंदिर में दर्शन करके भगवान की परिक्रमा जरुर लगाना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई रहती है, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा, आभामंडल अथवा प्रभाव रहता है. यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है. देवता के दर्शन और परिक्रमा करने के उपरांत मन्दिर के ध्वज को पृथ्वी पर लेटकर साष्टांग प्रणाम करने का विधान है. साष्टांग प्रणाम अर्थात मस्तक, हाथ, पैर, हृदय, आँख, जाँघ, बचन, और मन से भूमि पर लेटकर प्रणाम करना. देवताओं की परिक्रमा करने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है.
कैसे करें परिक्रमा –
देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योंकि दैवीय शक्ति का आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती मानी गई है. बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है. इस प्रकार बिना जाने की गई उल्टी परिक्रमा से देवता कुपित हो जाते हैं और दुष्परिणाम भुगतना पड़ सकता है.
किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये –
सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों में सभी पंचदेवों की परिक्रमा की अलग अलग संख्या निर्धारित की गई है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है. सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं-
1. महिलायें वटवृक्ष की परिक्रमा कर सौभाग्य की प्राप्ति कर सकती हैं. वट वृक्ष या पीपल वृक्ष की 11, 21 या 108 परिक्रमा करना चाहिए.
2. शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है. परिक्रमा करते समय ‘ॐ नम: शिवाय’ मन्त्र का जाप करना चाहिए. भगवान शिव की परिक्रमा करते समय अभिषेक की धार को न लांघे.
3. देवी दुर्गा या किसी देवी की एक परिक्रमा किया जाना शास्त्रसम्मत है. देवी की परिक्रमा करते समय देवी के शतनाम का पाठ करना चाहिए या उनके किसी मन्त्र का ही पाठ करना चाहिए.
4. श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है. गणेश जी की परिक्रमा करने से अपनी सोची हुई कई अतृप्त कामनाओं की तृप्ति होती है. गणेशजी के विराट स्वरूप व मंत्र का विधिवत ध्यान करने पर कार्य सिद्ध होने लगते हैं.
5. भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए. भगवान विष्णु की परिक्रमा करते समय ॐ नमोभगवते वासुदेवाय मन्त्र का जप करते रहना चाहिए. विष्णु जी की परिक्रमा करने से हृदय परिपुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच की वृद्धि होती है तथा सुख की प्राप्ति होती है.
6. सूर्य मंदिर की सात परिक्रमा करने का विधान है. सूर्य की परिक्रमा करते समय भास्कराय मंत्र का भी उच्चारण करना चाहिए. रोगों का नाशक करने के लिए सूर्य को अर्घ्य देकर “ॐ भास्कराय नमः” का जाप करना चाहिए और जाप पूरा होने पर परिक्रमा करना चाहिए.
परिक्रमा के नियम–
1. परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए; साथ ही परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह खंडित हो जाती है.
2. – परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें.
3. उलटी अर्थात बाये हाथ की तरफ परिक्रमा नहीं करनी चाहिये.
इस प्रकार देवी-देवताओं की परिक्रमा विधिवत करने से जीवन में हो रही उथल-पुथल व समस्याओं का समाधान सहज ही हो जाता है. इस प्रकार सही परिक्रमा करने से पुण्य और पूर्ण धर्म लाभ की प्राप्ति होती है.

