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पारिजात योग एक अद्भुत योग है. यह एक दैवी शक्ति सम्पन्न योग माना जाता है. जिसकी कुंडली में यह योग होता है और यदि योग बनाने वाले ग्रह कहीं से दूषित नहीं हैं तो यह एक प्रबल राजयोग बनाता है. यह योग गौतम बुद्ध की कुंडली में प्राप्त था. इस योग के बनने के कई प्रकार हैं लेकिन सबसे शक्तिशाली नीचे दिया गया तीसरा और चौथा प्रकार है.

1-लग्न का स्वामी जिस राशि में हो उसका स्वामी का उच्च का हो और लग्न से केंद्र में स्वराशि में स्थित हो. यह सबसे कमजोर योग है और पारिजात योग की परिभाषा के अंतर्गत नहीं है.  

2-बृहस्पति जिस राशि में स्थित हो उसका स्वामी उच्च का होकर बृहस्पति से केंद्र में स्थित हो.यह भी पारिजात योग भी परिभाषा में नहीं बैठता.

3-जन्म कुंडली में लग्न स्वामी जिस राशि में स्थित हो और नवमांश में जिस राशि में हो उसका स्वामी केंद्र में जिस राशि में हो उसका स्वामी यदि केंद्र या त्रिकोण में उच्च का हो तो पारिजात योग बनता है.

4-लग्न का स्वामी जिस राशि में हो उसका अधिपति जिस राशि में हो, यदि इस दूसरी राशि का अधिपति का नवांश अधिपति यदि केंद्र में हो तो पारिजात योग होता है.यदि यह केंद्र में उच्च का है तो प्रबल राजयोग बनता है. इस जातक के चरणों राजा बैठते हैं.

4-जन्म कुंडली और नवांश कुंडली के लग्न और लग्न स्वामी के साथ कोई अशुभ दृष्टि या युति नहीं होनी चाहिए

पारिजात योग के निर्माण और उसके प्रभाव को जानने के लिए कुंडली का ठीक से विश्लेषण करना चाहिए.यह मूलभूत रूप से लग्न स्वामी की राशि स्वामी और उसके नवांशेश पर निर्भर करताहै.यह योग इस योग में शामिल ग्रहों की महादशा और अंतर्दशा के समय अपना फल देता है.

पारिजात एक दिव्य वृक्ष है जो समुद्रमंथन से निकला था.यह इंद्र के नंदन वन में मौजूद है.इसे "कल्प वृक्ष" के नाम से भी जाना जाता है.सत्यभामा के लिए श्री कृष्ण ने यह वृक्ष इंद्र के पार्षदों से युद्ध कर प्राप्त किया था और द्वारका ले थे.सत्यभामा के अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद तथा उनकी कइच्छा पूर्ण होने के बाद इसे उन्होंने इंद्र के सम्मान के लिए पुन: इंद्र लोक में स्थापित कर दिया था.जिस तरह यह वृक्ष सभी इच्छाओं को पूरा करता है उसी तरह जातक की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं. इस योग के सही सही फलीभूत होने पर प्रबल राजयोग होता है परन्तु यह राजयोग अर्ध्यायु के बाद शुरू होता है.यह योग जातक को सम्प्रभु बनाता है,वह किसी की दासता स्वीकार नहीं करता.ऐसे जातक मध्यआयु के बाद सुखी रहते हैं.ये दयावान, सत्य निष्ठा रखने वाले और संसार में सम्मानित होते हैं.