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चतुर्दशी एक अशुभ तिथि मानी जाती है लेकिन शाक्त धर्म में यह एक शुभ तिथि है. चतुर्दशी तिथि यानी चौदस मास में दो बार आती है. पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्दशी को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्दशी को शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी कहते हैं. चतुर्दशी के देवता भगवान शंकर है. इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने और व्रत रखने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर कर लेता है. सभी शैव और शाक्त धर्म से सम्बन्धित ग्रंथों में चतुर्दशी को अत्यंत शुभ तिथि माना गया है. कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को विशेष शुभ माना गया है यदपि इस तिथि में जन्म अशुभ होता है. इस तिथि में काली मां और दुर्गा माता की उपासना और साधना अत्यंत फलदायी होती है. विगत शताब्दी के महान काली भक्त श्री रामकृष्ण परमहंस इस दिन काली पूजा का विशेष आयोजन करते थे. ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी के बाद ही साल का सबसे बड़ा दिन होता है. ज्येष्ठ अर्थात बड़ा इसलिए यह सबसे बड़ा महीना भी होता है. ज्येष्ठ महीना का समापन इसके बाद पूर्णिमा के साथ सम्पन्न होता है.

शुक्ल पक्ष चतुर्दशी मुहूर्त-

शुक्ल चतुर्दशी का प्रारम्भ 7:50 AM गुरुवार को होगी और इसका समापन शुक्रवार को 7:32 AM पर होगा. ऐसे शुक्ल चतुर्दशी की पूजा और व्रत 20 तारीख दिन गुरुवार को किया जाएगा. इस तिथि का प्रारम्भ शुभ अनुराधा नक्षत्र में हो रहा है. इसके बाद 21 तारीख शुक्रवार को पूर्णिमा 7 बजकर 32 मिनट पर लगेगी और 22 तारीख को सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी. वट पूर्णिमा का व्रत 21 जून को ही किया जाएगा.

इस दिन क्या करें –

1-शुक्ल चतुर्दशी के दिन दुर्गा पूजन तथा शिव पूजन का विशेष आयोजन करना चाहिए. इस दिन विधि पूर्वक दुर्गा या काली माता का पूजन से सभी मनोकामनायें तुरंत पूर्ण होती हैं.

2-इस दिन कलश स्थपित कर दुर्गा या काली माता के मन्त्र का जप अनुष्ठान सम्पन्न करना चाहिए. यह सिद्धिप्रद होता है. इस अनुष्ठान में जप आदि की संख्या को सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक सम्पन्न करना चाहिए.

3-इस दिन पीपल वृक्ष की पूजा करना चाहिए और सम्भव हो तो एकांत में स्थित पीपल के नीचे बैठ कर ही काली या दुर्गा पूजन करना चाहिए. पीपल के इतर इस दिन बिल्व वृक्ष के नीचे भी पूजन का आयोजन करना चाहिए.

4-शुक्ल चतुर्दशी के दिन दुर्गा कवच या काली कवच को सिद्ध करना चाहिए. इस दिन तांत्रिक कवच सिद्ध हो जाते हैं.

5-दोनों चतुर्दशी को प्रचंड ज्वालामालिनी की उपासना और पूजा की जाती है. यह शक्ति लक्ष्मण को सिद्ध थी. ज्वालामालिनी देवी का मन्त्र इस प्रकार है -ॐ नमो भगवती ज्वालामालिनी देवदेवि सर्वभूतसम्हारकारिके जातवेदसि ज्वलन्ति ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रजवला हुं रं रं रं रं रं ज्वालमालिनी हुं फट् स्वाहा. इसके अनेक भेद हैं.