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हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा तिथि लक्ष्मी जी की तिथि है. वैष्णव हर तिथि अपनी बताते हैं जबकि हर तिथि अलग अलग देवताओं को समर्पित है. हर सम्प्रदाय के अनुयायी अपने ईष्ट की पूजा पूर्णिमा को कर सकते हैं. पूर्णिमा अपने ईष्ट की पूजा के लिए सर्वोत्तम तिथि है. सनातन धर्म के पंचदेव पूर्ण ब्रह्म स्वरूप हैं इसलिए पूर्णिमा को उनमे किसी की भी पूजा की जा सकती है. वैष्णव सम्प्रदाय ज्यादा प्रचार प्रसार करता रहा है इसलिए पूर्णिमा पर उन्होंने विष्णु और लक्ष्मी का आधिपत्य स्थापित कर दिया है. वैष्णवों ने यह काम द्वादश आदित्यों को विष्णु से एकत्व स्थपित कर किया. शाक्त धर्म के अनुयायी पूर्णिमा के दिन महात्रिपुर सुन्दरी की पूजा उपासना करते हैं जिनके पर्यंक के शिव, विष्णु इत्यादि देवता पाया हैं और लक्ष्मी उनको चंवर डोलाती हैं. पूर्णिमा के दिन शक्ति पूजा प्रशस्त है. पूर्णिमा के दिन अपने धर्मानुसार और सम्प्रदायानुसार पूजा से ही व्यक्ति को आनंद, संतोष और समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस बार, ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत 21 जून को मनाया जाएगा. इस दिन के उपासना एवं दान कर्म से पुण्य की प्राप्ति होती है. किसी भी पर्व में, शुभ तिथि में दान पुण्य का फल अनंत होता है.

ज्येष्ठ पूर्णिमा मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 21 जून, 2024 को सुबह 06 बजकर 01 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 22 जून, 2024 को सुबह 05 बजकर 07 मिनट पर होगा. पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा 22 जून, शनिवार के दिन है, इसका व्रत 21 जून को किया जाएगा.

क्या क्या कर सकते हैं –

1-हिंदू धर्म में तुलसी अत्यंत पवित्र मानी जाती है और भगवान विष्णु को प्रिय है. पूर्णिमा तिथि पर तुलसी पूजन का विशेष महत्व है, इस दिन तुलसी की पूजा करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.

2-पूर्णिमा तिथि में 16 घृत दीपक लक्ष्मी को गंगा तट पर, सरोवर के तट पर या पीपल की नीचे या शमी वृक्ष के नीचे या मन्दिर में अर्पित करना चाहिए. इससे धन की देवी प्रसन्न होती हैं.

3-पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए इससे देवताओं की प्रसन्नता होती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

4-ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन बरगद के पेड़ की पूजा भी अत्यंत शुभ और फलदायी कही गई है. इस दिन बरगद की पूजा करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख शांति आती है.

5-इस दिन ईष्ट देवता की विधि पूर्वक षोडश उपचारों से पूजा करनी चाहिए तथा यथेस्ट दान करना चाहिए. दान की बहुत महत्ता है, दान द्वारा राजा बलि ने इंद्र का पद प्राप्त कर लिया था.