ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का प्रमुख पर्व पड़ रहा है लेकिन इस दिन ही शनि जयंती भी मनाई जाएगी. शनि जयंती इस साल 6 जून को ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन मनाई जायेगी. इस दिन शनि देव की पूजा अनुष्ठान करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है. इस दिन विशेष पूजन और दान करें तो जीवन की सभी बाधाओं का अंत हो सकता है. शनि को कर्मों का स्वामी माना जाता है अर्थात कर्म, बिजनेस, जॉब्स इत्यादि का नैसर्गिक स्वामी शनि हैं. शनि पूजा करने से जीवन में बाधाएं कम होती हैं, पीड़ित व्यक्ति को शांति मिलती है. शनि के विशेष दिनों में, पर्वों पर शनि की पूजा से कुंडली से अशुभ प्रभाव समाप्त होता है. शनि जयंती के दिन शनि की दशा वाले जातक या पीड़ित जातक निम्नलिखित उपाय करें –
1-शनि जयंती के दिन शिव का अभिषेक करें और तदन्तर शनि देव का तेल से ध्यान करते हुए अभिषेक करें. शनि देव का तेल से अभिषेक करते समय उनके बीज मन्त्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” का जप करें या “ॐ शनैश्चराय नम:” मन्त्र का जप करें या वैदिक मन्त्र “ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिस्रवन्तु नः” का जप करें.
ध्यान –
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
2-सुबह स्नान के बाद भगवान शनि देव की विधि अनुसार पूजा करें. पीपल के वृक्ष मूल में जल चढ़ाएं. इसके साथ ही शाम के समय उनके समक्ष और पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं पश्चिम मुख करके जलाएं और शनि देव को मन्त्र बोलकर अर्पित करें. ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं. मन्त्रहीन पूजा देवता स्वीकार नहीं करते.
3-शनि देव “ॐ नम: शिवाय” मन्त्र का विधिपूर्वक जप करने से भी वशीभूत होते हैं. मन्त्र का सदैव विधिपूर्वक जप ही करना चाहिए, अविधिपूर्वक मन्त्र जप का फल राक्षस ले जाते हैं वह आपको नहीं मिलता.
4-शनि जयंती के दिन तेल का दान, लोहे का दान तथा नीलम का किसी आचार्य को दान करने से शनि दोष की निवृत्ति होती है. शनि जयंती के दिन शनि के किसी दान वस्तु का तुलादान करने से भी दोष निवृत्ति होती है और सुख की प्राप्ति होती है.
5-इस दिन पीपल की मन्त्र जप सहित 1001 परिक्रमा करने से शनि देव की प्रसन्नता होती है. परिक्रमा करते समय दो बातें करना चाहिए पहला-कोई भोग सामग्री रखें जो गिनती में प्रयोग कर सकें जैसे कोई फल, या इलायचीदाना या बताशा. हर परिक्रमा पूरा करके एक बताशा किसी बर्तन में रखते जाएँ साथ में पीपल मूल में जल देते जाएँ. इस तरह परिक्रमा पूरी करें और प्रसाद सबको बाँट दे.

