त्रयोदशी भगवान शिव के पूजा की विशेष तिथि है, ऐसा कहा गया है इस एक तिथि में शिव पूजन सहस्रगुना फलदायक होता है. हर महीने की त्रयोदशी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर महीने के आदित्यगण अलग अलग होते हैं. ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है. इस बार प्रदोष व्रत 4 जून, 2024 दिन मंगलवार को किया जाएगा. त्रयोदशी मंगलवार को पड़ रही है, भौमवार को पड़ने की वजह से इसे भौम प्रदोष के नाम से जाना जाता है. भौम प्रदोष व्रत को करने से भौतिक उन्नति, संपत्ति में वृद्धि, भूमि लाभ होता है मंगल दोष का प्रभाव कम होता है.
प्रदोष मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 04 जून, 2024 को रात्रि 12 बजकर 18 पर शुरू होगी. इस तिथि का समापन अगले दिन 04 जून को रात्रि 10 बजकर 01 मिनट पर होगा. पंचांग के अनुसार इस बार प्रदोष व्रत 4 जून को रखा जाएगा. इस दिन प्रदोष काल में ही शिव की पूजा शुभ मानी जाती है. यह शिव पूजन का विशेष काल होता है. पंचांग में प्रदोष काल का मुहूर्त दिया रहता है तदनुसार पूजन करना चाहिए.
प्रदोष व्रत की कथा –
स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की अकाल मृत्यु हुई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया.
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त “अंशुमती” नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया.
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.

