इस साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी तिथि का व्रत सभी कामनाओं को पूरा करने वाला है. चतुर्थी गणेश जी को समर्पित तिथि है. हिन्दू धर्म में पार्वती पुत्र गणेश जी संकट हरने वाले प्रमुख देवता हैं. गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए सभी देवता विघ्न नाश के लिए सर्वप्रथम इनकी पूजा करते हैं. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है. एकादशी की तरह ही द्वादश महीने में चतुर्थी भी अलग अलग होती है. इस बार चतुर्थी का यह व्रत आज शनिवार 11 मई को किया जाएगा. महिलाएं इस व्रत को संतान की प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश और चंद्रमा की अर्घ्य सहित पूजा अर्चना की जाती है. विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति का पूजन, स्तोत्र, पाठ और मंत्रोच्चारण करने से व्यक्ति की मनोवांक्षित इच्छाएं पूर्ण होती हैं और कल्याण होता है. गणेश जी के समक्ष गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेश जी तत्काल प्रसन्न होते हैं और फल प्रदान करते हैं.
विनायक चतुर्थी 2024 मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल चतुर्थी तिथि 11 मई दिन शनिवार को 02:50 एएम से प्रारंभ होगी और यह 12 मई रविवार को 02:03 एएम पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार विनायक चतुर्थी व्रत 11 मई को है.वैशाख विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 39 मिनट तक रहेगा.
गणेश जी की पंचोपचार, षोडश उपचारों से पूजा करें. पूजा करते समय गणेश जी को सिंदूर चढ़ाएं. उन्हें 21 या 108 दूर्वा गणेश मन्त्र द्वारा जरुर अर्पित करना चाहिए. गणेश जी को मोदक प्रिय है इसलिए मोदक का भोग लगाना चाहिए. ऋतु फल भी अर्पित करना चाहिए.
गजानन स्तोत्र –
नमस्ते गजवक्त्राय गजाननसुरूपिणे ।
पराशरसुतायैव वत्सलासूनवे नमः ॥ १॥
व्यासभ्रात्रे शुकस्यैव पितृव्याय नमो नमः ।
अनादिगणनाथाय स्वानन्दवासिने नमः ॥ २॥
रजसा सृष्टिकर्ते ते सत्त्वतः पालकाय वै ।
तमसा सर्वसंहर्त्रे गणेशाय नमो नमः ॥ ३॥
सुकृतेः पुरुषस्यापि रूपिणे परमात्मने ।
बोधाकाराय वै तुभ्यं केवलाय नमो नमः ॥ ४॥
स्वसंवेद्याय देवाय योगाय गणपाय च ।
शान्तिरूपाय तुभ्यं वै नमस्ते ब्रह्मनायक ॥ ५॥
विनायकाय वीराय गजदैत्यस्य शत्रवे ।
मुनिमानसनिष्ठाय मुनीनां पालकाय च ॥ ६॥
देवरक्षकरायैव विघ्नेशाय नमो नमः ।
वक्रतुण्डाय धीराय चैकदन्ताय ते नमः ॥ ७॥
त्वयाऽयं निहतो दैत्यो गजनामा महाबलः ।
ब्रह्माण्डे मृत्यु संहीनो महाश्चर्यं कृतं विभो ॥ ८॥
हते दैत्येऽधुना कृत्स्नं जगत्सन्तोषमेष्यति ।
स्वाहास्वधा युतं पूर्णं स्वधर्मस्थं भविष्यति ॥ ९॥
।। इति श्रीगजाननस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

