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भगवान शिव सबसे जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं. शिव पूजन से सब कुछ प्राप्त हो सकता है. शिव पूजन द्वारा रोग मुक्ति, धन धान्य की प्राप्ति, दीर्घायु की प्राप्ति, राज्य की प्राप्ति तथा शत्रु नाश इत्यादि सभी कुछ सम्भव है. एक मात्र पंचाक्षरी मन्त्र द्वारा सभी कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं. भगवान को स्वेछाचारिता पसंद नहीं है इसलिए उनका पूजन शास्त्रविहित होना चाहिए और शैव परम्परा के अनुसार ही होना चाहिए. यहाँ पांच तांत्रिक प्रयोग दिए जा रहे हैं –

1-यदि गुड़हल के 1008 फूल रोज शिव लिंग पर ॐ नम: शिवाय मंत्र से शुक्ल प्रतिपदा से कृष्ण चतुर्दशी तक अर्पित किया जाय और अर्पित करते समय दुश्मन के नष्ट होने के लिए प्रार्थना करें, तो दुश्मन का आवश्य नाश हो जाता है. यह एक लाख राई के पुष्प से पूजन द्वारा भी हो जाता है. शत्रु नाश के लिए एक लाख काली मिर्च द्वारा विधिपूर्वक शिवपूजन करने से भी शत्रुनाश होता है. शिव लिंग पर रूद्र मन्त्रों या महामृत्युंजय या पंचाक्षरी मन्त्र के साथ या सहस्रनाम के साथ तैलधारा छोड़ते हुए अभिषेक करने से शत्रु का नाश होता है. इस बावत किसी श्रेष्ठ आचार्य का वरण करके यह कार्य करना चाहिए.

2-यदि एक लाख करवीर या कनैला या कनेर का पुष्प विधिवत रुद्रा अभिषेक के बाद ॐ त्रयंबकम मंत्र से अर्पित करने से रोग से मुक्ति हो जाती है.

3-50 हजार गंगा की मिट्टी से बने पार्थिव लिंग पर शिव का विधिवत पूजन शुभ मुहूर्त में करने से रोग से तुरंत मुक्ति होती है.

4- आयु कम हो तो किसी प्रतिष्ठित शिव लिंग पर एक लाख दुर्वा से मृत्यंजय मंत्र द्वारा शुभ मुहूर्त में पूजन संपन्न करने से आयु बढ़ जाती है.

5-जब शरीर अशांत हो, घर में कलह हो, मन उचट जाए तो भगवान शिव का दुग्ध से अभिषेक करना चाहिए. इससे दुःख नष्ट होकर शान्ति होती है.

इसके इतर भी अनेक उपाय हैं जिससे उपरोक्त कार्य किये जा सकते हैं. शास्त्र निष्ठा वाले, तपस्वी, ज्ञानी गुरु द्वारा मन्त्र ग्रहण कर शिव पूजन में प्रवृत्त होना चाहिए. पंचाक्षरी मन्त्र का भी विधान बताया गया है. यह ध्यान रखना चाहिए कि सभी मन्त्रों में अनुग्रह, निग्रह करने की शक्ति होती है, विधिविहीन गलत प्रयोग से ये मन्त्र मारक भी बन जाते हैं. इस मन्त्र के देवता स्वयं रूद्र हैं वे क्रोधित होकर नाश कर देते हैं. पंचाक्षरी जैसे मन्त्र पर सभी ऋषियों का बल है, इसका अशास्त्रविहित जप नहीं करना चाहिए. शैव शास्त्रों में विभिन्न अधिकारियों के लिए इस मन्त्र के विभिन्न रूप बताये गये हैं, कौन प्रणव युक्त जप सकता है, कौन बिना प्रणव के तथा कौन पंच प्रणव युक्त मन्त्र का अधिकारी है यह अधिकार स्वयं शिव द्वारा ही तय किये गये हैं.