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इस वर्ष अक्षय तृतीया को ही पड़ रही भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती. अक्षय तृतीया के दिन सूर्य देव से युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था जो कभी खाली नहीं होता था. यह एक अत्यंत शुभ पर्व तिथि है. अक्षय तृतीया के दिन किया गया दान,पुण्य, और जप, तप अक्षय पुण्य देने वाला माना गया है. भार्गव नाम से प्रसिद्ध भगवान परशुराम शिव के परम भक्त हैं इसलिए उनका जन्म शुक्रवार को प्रदोष काल में हुआ था. इस वर्ष परशुराम जयंती शुक्रवार को पड़ रही है जिससे इसका महत्व और भी बढ़ गया है. ऋषि पराशर ने इन्हें शुक्रावतार भी कहा है. शुक्र काल पुरुष का मारक भाव का स्वामी है इसलिए शुक्रावतार कहना तर्कसंगत ही है. भगवान परशुराम अष्ट चिरंजीवियों में माने गये हैं –

अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये सभी अमर हैं. भगवान परशुराम महेंद्र पर्वत पर निवास करते हुए ध्यानस्थ हैं.

परशुराम जी महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र हैं. बचपन में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर बुलाते थे. जब ये बड़े हुए तो पिता से वेदों की शिक्षा पूर्ण रूप से प्राप्त कर लिया तब इन्हें शस्त्र विद्या सीखने की इच्छा हुई. पिता जमदग्नि के कहने पर इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किये. उन्हीं में से एक परशु (फरसा) था और एक शिव धनुष पिनाक था जिससे 21 बार क्षत्रियों का विनाश और सहस्रार्जुन के बध के बाद शिव के आदेश से जनक के यहाँ स्थापित कर दिया था. परशु धारण करने के कारण राम का नाम परशुराम पड़ गया था. परशुराम महान पितृ और मातृ भक्त थे. पिता जमदग्नि के कहने पर इन्होने माता रेणुका का सिर परशु से काट दिया था. जमदग्नि उनकी पितृ भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा, तब उन्होंने माता को जीवित करने और घटना को भूल जाने का वर माँगा था. माता रेणुका देवी के रूप में पूजनीय हैं. ऐसा शास्त्रों में बताया गया है कि जमदाग्नि छिन्नमस्ता के उपासक थे जिस कारण माता रेणुका की छिन्नमस्ता के रूप में पूजा की जाती है.

परशुराम जयंती मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई 2024 को सुबह 04.17 पर शुरू होगी और अगले दिन 11 मई 2024 को प्रात: 02.50 पर इसका समापन होगा. भगवान परशुराम का अवतरण काल प्रदोष काल है इसलिए इनकी पूजा प्रदोषकाल में ही की जायेगी. इस दिन भगवान परशुराम का पूजन कर इनके नाम तर्पण करना चाहिए.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने पृथ्वी का भार हरने के लिए और पृथ्वी से पापी विनाशकारी और अधर्मी राजाओं का विनाश करने के लिए अवतार लिया था. परशुराम जी के रुप में भगवान विष्णु ने 6वां अवतार लिया था. भगवान परशुराम गुरु के रूप में भी पूज्य हैं. इनके अनेक शिष्य हुए जिनमे रावण, कर्ण, भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य प्रमुख हैं. परशुराम ने रावण को सह्रार्जुन के कारागार से भी मुक्त कराया था. आगमों और पुराणों में भगवान परशुराम को श्रीविद्या के महान आचार्यों में एक माना गया है.