पौराणिक कथाओं के अनुसार, शुकदेव के जन्म के बारे में कई कथाएं मिलती हैं. एक कथा के अनुसार, शुकदेव द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व राधा जी के अवतार के समय राधा के साथ खेलने वाले शुक थे. जबकि एक अन्य कथा में इन्हें भगवान शिव द्वारा व्यास जी के तप का वरदान बताया जाता है. शुकदेव मुनि सिद्ध बताये जाते हैं और समय-समय पर अधिकारी पुरुषों को दर्शन देकर उन्हें अपने दिव्य उपदेशों द्वारा कृतार्थ करते रहते हैं.
संतो की मान्यता है कि शुक देव महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे. कथा के अनुसार एक समय कैलाश पर भगवान शिव माता पार्वती को कथा सुना रहे थे. इस बीच पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गई और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक ने हुंकार भरना शुरू कर दिया. जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ कि कथा पार्वती जी नहीं बल्कि एक शुक सुन रहा है तो उन्होंने शुक को मारने के लिए अपना त्रिशूल छोड़ दिया. शुक भगवान शिव से जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा, भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम आ पहुंचा और सूक्ष्म रूप धारण करके व्यास जी की पत्नी के मुख के द्वारा उनके गर्भ में जाकर छुप गया. कथा के अनुसार भगवान शिव के भय से शुक 12 वर्ष तक गर्भ से बाहर नहीं निकला. भगवान श्रीकृष्ण ने जब स्वयं आकर शुक को आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर उसके ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी वह माता वटिका के गर्भ से बाहर निकले और व्यास जी के पुत्र कहलाए.
भागवत पुराण के अनुसार जन्म लेते ही शुकदेव सन्यासी हो गये और वन में तप के लिए चले गये थे. पिता वेदव्यास जी के आदेश पर शुकदेव परम तत्त्वज्ञानी महाराज जनक के पास गए थे. जनक जी की कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर शुकदेव ने ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त किया था. भागवत पुराण के अनुसार शुकदेव जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था. भागवत में शोकाकुल परीक्षित के यहाँ शुकदेव यति के रूप में ही प्रवेश करते हैं और उन्हें कथा के अंत में अद्वैत का उपदेश करते हैं. भागवत के बाद लिखे गये पुराणों और कथाओं में शुक देव को मायावी पितृपूजक पुजारियों और कथावाचको ने बाल-बच्चों वाला आम मनुष्य बना दिया.
पुजारियों की एक गपोड़शंख कथा के अनुसार एक बार देवलोक की अप्सरा रंभा शुकदेव से आकर्षित हो गई थी और उनसे प्रणय निवेदन किया, लेकिन ध्यान तप में निरत शुकदेव जी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया. रंभा के बहुत कोशिश करने पर शुकदेव ने उससे पूछा- आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं, मैं तो उस सार्थक भगवत रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक जैसा लगता है. मैं उस रस को छोड़कर अपने जीवन को निरर्थक नहीं बनाना चाहता. अगर कृष्ण की प्रेरणा से मुझे दोबारा जन्म लेना पड़ा, तो मैं 9 माह आप जैसी ही माता के गर्भ में रहकर इसका सुख लूंगा. निकृष्ट पितृपूजक पुजारियों की अन्य एक कथा यह भी है कि 25 साल की उम्र में शुकदेव का विवाह स्वर्ग में वभ्राज नाम के सुकर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया वहिंषद की पुत्री पीवरी से हुआ था. कूर्म पुराण के अनुसार, शुकदेव मुनि के 5 पुत्र व एक पुत्री थी, कुछ अन्य कथा पुजारियों के अनुसार शुकदेव जी के उन्हीं की तरह 12 पुत्र व एक पुत्री थी.

