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चंद्रमा से निर्मित योगों में केमद्रुम योग एक बहुत अशुभ योग है. यह एक सबसे विकट दरिद्र योग निर्मित करता है. चन्द्रमा सुख कारक है इसलिए इसके खराब होने पर दुःख आवश्यम्भावी है. जिसकी कुंडली में केमद्रुम योग होता है वह निन्दित, बुद्धि विद्या से हीन, पुत्र कलत्र से हीन इधर उधर भटकने वाला, दुःख से अति पीड़ित, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, दरिद्र, नीच एवं कम उम्र वाला होता है. यह योग दुर्भाग्य लाता है. ज्योतिषी इस योग में तिथि महत्व को नहीं जानते इसलिए कहीं किताब में भी यह लिखा हुआ नहीं मिलता.

केमद्रुमे भवति पुत्र कलत्रहीनो देशान्तरे ब्रजति दुःखसमाभितप्तः।
ज्ञाति प्रमोदनिरतो मुखरो कुचैलो नीचः भवति सदा भीतियुतश्चिरायु।।

यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा से दूसरे व 12वें भाव में सूर्य को छोड़ कर कोई भी ग्रह नहीं हो तो उस स्थिति में केंमद्रुम नामक योग का निर्माण होता है. यह योग मूलभूत रूप से चतुर्दशी और शुक्ल प्रतिपदा को ही बनता है. इन दो तिथियों में ही चन्द्रमा से आगे या पीछे सूर्य होता है. पराशर के अनुसार –
चन्द्रादाद्यधनाsन्त्यस्थो विना भानुं न चेद ग्रह:।
कश्चित स्याद्वा विना चन्द्रं लग्नात केंद्रगतोsथवा।।
यहाँ स्पष्ट है चन्द्र से धन और अन्त्य भाव अर्थात दूसरे और बारहवें सूर्य को छोड़कर कोई अन्य ग्रह न हो तो यह योग बनता है. लग्न से केंद्र में यदि चन्द्रमा के अलावा कोई अन्य ग्रह न हो तो भी यह अशुभ योग होता है. लग्न से केंद्र में यह योग कृष्ण षष्टी, सप्तमी या अष्टमी को ही बन सकता है. स्पष्ट है यह योग सिर्फ इन तीन चार तिथियों में ही बन सकता है -कृष्ण चतुर्दशी, प्रतिपदा और कृष्ण षष्टी में ज्यादा अशुभ प्रभाव माना गया है. इसके प्रभाव का आंकलन तिथी के अनुसार ही जानना चाहिए. मसलन चतुर्दशी तिथि को छः से भाग दें तो अंतिम पांचवां और छठवें भाग में प्रबल दोष होता है.

यदि लग्न और चन्द्रमा से केंद्र में शुभ ग्रह हो तो यह योग भंग माना जाता है. केमद्रुम योग के कई प्रकार बताये गये हैं. जिस जातक की जन्म कुंडली में केमद्रुम योग बनता है वह मानसिक रूप से विचलित और उद्दिग्न रहता है. ये जातक अशुभ प्रभाव में अपने ही गलत कार्यो और निर्णय के कारण अपना सब कुछ नष्ट कर लेते हैं. आचार्यों के अनुसार केमद्रुम योग के प्रभाव से समस्त राजयोग नष्ट हो जाते हैं.

केमद्रुम योग निर्माण की कुछ अन्य स्थितियां इस प्रकार वर्णित है-
१- रात्रि का जन्म हो, चन्द्रमा निर्बल हो और पाप ग्रह की राशि या नवांश में हो, पाप ग्रह से युत हो और दशमेश से दृष्ट हो
२-चन्द्रमा नीच नवांश में हो, खल ग्रह के साथ हो, नवमेश से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है
३-रात्रि का जन्म हो , क्षीण चन्द्र हो और चन्द्रमा अपनी नीच राशि में हो तो केमद्रुम योग होता है
४- यदि नवमेश लग्न से द्वादश हो और द्वादश स्वामी बलहीन होकर द्वितीय में हो और कोई पाप ग्रह तृतीय में हो तो केमद्रुम योग होता है.
ये स्थितियां केमद्रुम योग नहीं हैं, ये अशुभ योग हैं. केमद्रुम योग की परिभाषा ऊपर एकदम स्पष्ट दी गई है जिसमे पराशर ने योग की स्थिति को स्पष्ट लिखा है. बाद के ज्योतिष विद्वानों ने इन योगों को भी केमद्रुम योग की तरह अशुभ परिणाम देते पाया इसलिए इसे भी केमद्रुम योग कह कर प्रचारित किया गया.

केमद्रुम योग भंग –

१- यदि चंद्रमा केंद्र में विद्यमान हो और साथ में कोई दूसरा शुभ ग्रह विद्यमान हो या उससे दृष्ट हो तो केमद्रुम योग की अशुभता नष्ट हो जाती है.
२- यदि केंद्र में शुक्र हो और गुरु से दृष्ट हो तो योग भंग होता है
३- यदि चंद्रमा स्वयं उच्च या उच्च नवांश या अधिमित्र के नवांश में विद्यमान हो और गुरु दृष्ट हो उस स्थिति में भी केमद्रुम योग का प्रभाव कम हो जाता है.

कुछ ज्योतिष विद्वानों के अनुसार चन्द्रमा से चतुर्थ और दशम में शुभ ग्रह न हो तो यह योग बनता है या नवांश में भी यही स्थिति हो तो केमद्रुम होता है अन्यथा नहीं होता. अनुभव से देखा गया है कि चन्द्रमा यदि पाप ग्रह से पीड़ित हो, क्षीण हो और उससे दूसरे और द्वादश कोई ग्रह न हो, उस पर कोई शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो केमद्रुम योग होता है और जातक जिन्दगी भर दुखी रहता है, इससे ऊबर नहीं पाता. यदपि की योग भंग बताया गया है लेकिन केमद्रुम योग पूरी तरह निरस्त नहीं होता, उसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है. इस योग को लग्न और चन्द्रमा दोनों से ही देखना चाहिए.