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 हिंदू धर्म शास्त्रों में व्रत-उपवास की बड़ी महिमा बताई गई है. आस्था के अनुसार, व्यक्ति सप्ताह के दिन, किसी विशेष तिथि या किसी पर्व के अनुसार व्रत रखता है. कई लोग मनोकामना पूर्ति और कष्ट निवारण के लिए भी विशेष व्रतों का अनुष्ठान करते हैं. व्रत के अनेक प्रकार हैं, कठिन से कठिन चंद्रायण इत्यादि व्रत हैं तो एकादशी इत्यादि सामान्य व्रत भी हैं. कोई व्रत दिन भर बिना अन्न ग्रहण किए करते हैं, तो कई बिना जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखते हैं. हर कोई अपनी आस्था और कामना के अनुसार व्रत रखता है. माना जाता है कि व्रत भी एक तप है और उसका तप के अनुसार फल मिलता है. व्रत करने का प्रयोजन देह, मन, विचार और भावना को शुद्ध करना और भक्ति की वृद्धि करना है लेकिन इसे कामनाओं के लिए भी करने का विधान है. व्रत से ईच्छा शक्ति की वृद्धि होती है. व्रतों द्वारा भक्त सब कुछ सिद्ध कर लेते हैं. शास्त्रों के अनुसार, व्रत करते समय व्रत के नियमों का जरूर पालन करना चाहिए, व्रत के देवता के अनुसार अपनी दिनचर्या रखनी चाहिए वरना पूजा का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है-

व्रत के नियम –

1-व्रत करने के लिए सबसे पहले व्रत का संकल्प जरूर करें. इसके बिना व्रत का फल नहीं मिलता. संकल्पविरहित कर्म या व्रत या पूजा ईश्वर के लिए करना चाहिए. सांसारिक कामनाओं के लिए संकल्प के साथ ही व्रत पूजन करना चाहिए. भगवद्गीता में सर्वसंकल्प त्यागी मनुष्य को श्रेष्ठ योगी माना गया है.
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।4.19।।

2-आपने जितने समय या दिन के लिए व्रत का संकल्प लिया है, उसे पूर्ण करने के बाद विधिवत पूजन और दान के साथ पारण जरूर करना चाहिए. इससे आपको पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है.

3-पारण करने के बाद आप उसी व्रत को दोबारा आरंभ कर सकते हैं.

4-व्रत करते समय मन में संयम रखना जरूरी है. जब आपका मन संयमित रहेगा तो व्रत में देवता के प्रति मन लगा रहेगा. संयम से मनोविकार नहीं आते.

5-व्रत के समय सुपाच्य भोजन करना चाहिए. किसी भी प्रकार का तामसिक या फिर गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए.

6-व्रत करने का अर्थ है कि वह दिन अपने आराध्य को समर्पित किया है. इसलिए त्रिकाल पूजन करें और दिनभर अपने आराध्य का स्मरण करते रहें .

7-व्रत के दौरान दिमाग में किसी भी प्रकार के गंदे विचार न लायें, मन को शुद्ध रखें, किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए. व्रत के दौरान सत्साहित्य का अध्यवसाय करें.

8-अगर आप किसी कामना की पूर्ति के लिए व्रत कर रहे हैं, तो किसी अच्छे आचार्य या पंडित से सलाह लेकर ही रखें. इस विषय में कोई आचार्य ही वो आपको सही मार्गदर्शन दे सकता है.

9-महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान व्रत नहीं करना चाहिए. क्योंकि उन दिनों अशुद्धि के कारण के व्रत मान्य नहीं होते हैं.

10-अगर आपने व्रत का संकल्प लिया है लेकिन सेहत खराब हो गई है, तो व्रत बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. शास्त्र में इसका निराकरण किया गया है. व्रती को कोई दोष नहीं लगता है.

11-गर्भवती महिलाओं को व्रत रखने से सदैव बचना चाहिए. गर्भवती होने पर व्रत करने से पाप लगता है क्योंकि गर्भस्थ शिशु को कष्ट मिलता है.

12-व्रत के दौरान बार-बार भोजन या फलाहार नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही व्रत खोलने के बाद व्रत के अनुसार ही सात्विक भोजन ही करना चाहिए. हर व्रत में भोजन के नियम अलग होते हैं. लम्बा व्रत में भोजन हल्के खाद्य और पेय से शुरू कर क्रमानुसार थोडा थोड़ा बढ़ाना चाहिए..