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एकादशी भगवान विष्णु की तिथि है, यह वैष्णव तिथि मान्य है. इस दिन वैष्णव समाज के लोग एकादशी तिथि पर व्रत-उपवास रखते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी की कथा राजा मान्धाता से जुड़ी हुई है. मान्धाता इक्ष्वाकुवंशीय नरेश युवनाश्व के पुत्र थे. वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत पूजा करने से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा- अर्चना की जाती है. यह भगवान वामन का जन्म दिन है. महाभारत कथा में बताया गया है कि वरुथिनी एकादशी सभी कामनाओं को पूर्ण करती है. सनातन शास्त्रों के अनुसार एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. इस व्रत से गुरु दोष की निवृत्ति होती है.

एकादशी मुहूर्त –

एकादशी तिथि की शुरुआत 3 मई की रात 11 बजकर 24 मिनट से होगी. यह अगले दिन 4 मई को रात 8 बजकर 38 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि को देखते हुए एकादशी का व्रत 4 मई को ही रखा जाएगा. एकादशी पर विष्णु जी की पूजा अर्चना का शुभ मुहूर्त 4 मई की सुबह 7 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर 8 बजकर 58 मिनट तक है.

वरुथिनी एकादशी कथा –

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे राजेश्वर! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है. इसकी महात्म्य कथा आपसे कहता हूँ..

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे. वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे. एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा. राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया. राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा. उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला.

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था. इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए. उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो. उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे. इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था. भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया. इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया. इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे. जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए. इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है.