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दक्षिण भारत में शैव धर्म सबसे प्रभावी रहा है. यहाँ शैव दिव्य स्थलम की सूची में अनेकों दिव्य शिव मन्दिर हैं, इन्हीं शिव मन्दिरों में एक मन्दिर है तिरुनागेश्वरम नागनाथर मन्दिर. यह शैवों के नवग्रह स्थलम में से एक है जो राहु को समर्पित है. यह मन्दिर छठवीं शताब्दी का मन्दिर है. नागनाथर मन्दिर तमिलनाडू के कुम्भकोणम में कावेरी नदी के तट से सात किलोमीटर दूर स्थित है. मंदिर में राहु और उसकी शक्ति के लिए एक अलग मंदिर है. मंदिर परिसर में नागनाथ स्वामी (शिव), पिरयानी अम्मन (पार्वती), गिरि-गुजांबिगई (पार्वती) के विशेष मंदिर शामिल हैं. यहाँ राहु गोचर पर हर 1.5 साल में राहु पियार्ची नाम से त्यौहार मनाया जाता है. सर्प-दोष या राहु-केतु के अशुभ प्रभाव से परेशान लोग दोष निवारण के लिए एक ही दिन में सुबह कुदंथाई या कुंभकोणम नागेश्वर, दोपहर में थिरुनागेश्वरम नागनाथर, शाम को थिरुपंबुरम पम्बुरेश्वर और नागूर नागेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. परिसर के अंदर देवी गिरिगुजाम्बल का एक अलग मंदिर है . इस मन्दिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि साँपों के प्रमुख राजा शेषनाग और कुलिक ने शिव की पूजा और आराधना की थी.

यहाँ राहु की विशेष पूजा प्रतिदिन राहु काल में की जाती है. इस मंदिर में राहुकालम के दौरान राहु की प्रतिमा का दूध से अभिषेक किया जाता है तब उसका रंग नीला हो जाता है. यह इस मन्दिर एक बड़ा अद्भुत चमत्कार माना जाता है. यहाँ दूर दूर से भक्त राहु दोष के निवारण के लिए आते हैं.

राहु का शिव से सम्बन्ध है. शिव पुराण में जालन्धर की कथा में राहु का प्रसंग आता है. जालंधर ने राहु को दूत बनाकर कैलाश भेजा था और राहु से कहा था कि शिव से कहना कि वे तो साधु और दिगम्बर हैं, भिक्षा पर जीवन गुजरते हैं. उन्हें पार्वती जैसी सुंदर स्त्रीरत्न की जरूरत नहीं है. यह स्त्रीरत्न तो तीनो लोकों के विजेता जालंधर के महल की शोभा के योग्य है. सिंहिका पुत्र राहु जब दूत बन कर कैलाश पहुंचा और उसने जालन्धर के वचनों को यथावत सुना दिया, तभी शिव के भ्रू-मध्य से कीर्तिमुख नाम का बड़ा भयंकर गण उत्पन्न हुआ. उसका सिर सिंह के समान था और वह बड़ी अग्निमय जीभ लपलपाता हुआ राहु की तरफ झपटा. राहु भगा लेकिन कीर्तिमुख ने उसे पकड़ लिया और उसका भक्षण करने को उद्धत हुआ. उस समय उसने भगवान शिव से रक्षा के लिए स्तुति की –
देवदेव महेशान पाहि मां शरणागतं
सुराsसुरैस्सदा वन्द्य: परमैश्वर्यवान प्रभु:

स्तुति के कारण भगवान शिव ने कीर्तिमुख को दूत को छोड़ देने का आदेश दिया. इस प्रकार राहु शिव की कृपा से बच गया था.