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इस साल वैशाख मास का पहला व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का व्रत है. चतुर्थी गणेश जी को समर्पित तिथि है. गणेश जी संकट हरने वाले प्रमुख हिन्दू देवता हैं. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी एक अशुभ तिथि कही जाती है. गणेश जी का जन्म ही देवताओं के लिए संकट बन गया था. उनसे शिव सहित सभी देवताओं का युद्ध हुआ और शीश कटने पर माता पार्वती ने विप्लव मचा दिया था. गणेश जी विघ्नहर्ता हैं इसलिए सभी देवता विघ्न नाश के लिए सर्वप्रथम इनकी पूजा करते हैं. वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है. एकादशी की तरह ही द्वादश महीने में चतुर्थी भी अलग अलग होती है. इस बार चतुर्थी का यह व्रत 27 अप्रैल को किया जाएगा. महिलाएं इस व्रत को संतान की प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इस दिन भगवान श्री गणेश और चंद्रमा की अर्घ्य सहित पूजा अर्चना की जाती है. विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति का पूजन, स्तोत्र, पाठ और मंत्रोच्चारण करने से व्यक्ति की मनोवांक्षित इच्छाएं पूर्ण होती हैं और कल्याण होता है. गणेश जी के समक्ष गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने से गणेश जी तत्काल प्रसन्न होते हैं और फल प्रदान करते हैं. कुंडली में राहु, केतु और शनि का अशुभ प्रभाव पड़ रहा हो गणेश अथर्वशीर्ष पाठ जरूर करना चाहिए. गणपति सम्प्रदाय में गणेश की तांत्रिक उपासना की जाती है.

विकट संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त –

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ अप्रैल 27, 2024 को सुबह 08:17 पर प्रारम्भ होगा और इसका समापन अप्रैल 28, 2024 को शामत 08:21 पर होगा. विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूजन 27 को ही किया जाएगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 22 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 1 मिनट तक रहेगा. संकष्टी के दिन चन्द्रोदय का समय 10:23 pm है इसलिए अर्घ्य दान का यही उत्तम समय है.  

गणेश मन्त्र –
ॐ गं गणपतये नम:
ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥

गणेश जी का द्वादश नाम श्लोक मन्त्र-

गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ । 

गणेश जी की आरती –

ऊँ  वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥