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हिंदू धर्म में हनुमान जी की पूजा बाल ब्रहम्चारी के रूप में की जाती है, लेकिन हमारे देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां हनुमान जी के साथ-साथ उनकी पत्नी सुवर्चला की भी पूजा होती है। उत्तरभारत्त में हनुमान जी की ब्रह्मचारी रूप की ही मान्यता है परन्तु देवताओं की पूजा में तन्त्र का अपना अलग विकास क्रम है. तन्त्र का मत है कि बिना स्त्री के गूह्य विद्याएँ प्राप्त नहीं की जा सकती हैं. उन विद्याओं की साधना के लिए शक्ति का साथ होना आवश्यक है. शक्ति स्वकीया हो या परकीया, शक्ति का होना आवश्यक है. वैष्णव तन्त्र परकीया शक्ति को महत्व देते हैं जिसकी कई वजहें वैष्णवाचार्यों ने बताई हैं.

पराशर संहिता में हनुमान जी के विवाहित होने का वर्णन मिलता है. उनका विवाह सूर्यदेव की पुत्री सुवर्चला से हुआ था. संहिता के अनुसार हनुमान जी ने सूर्य देव को अपना गुरू बनाया था. सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्यायें थीं. इन सभी विघाओं का ज्ञान बजररंग बली प्राप्त करना चाहते थे. सूर्य देव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमान जी को दे दिया, लेकिन शेष 4 विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया. शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों, उसमे शक्ति का होना जरूरी था.

हनुमान जी बाल ब्रहम्चारी थे, इस कारण सूर्य देव उन्हें शेष 4 विघाओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए. इस समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमान जी से विवाह करने की बात कही. विद्या ग्रहण करने के लिए हनुमान जी ने विवाह के लिए हां कर दिया. सूर्य देव के तेज से एक कन्‍या का जन्‍म हुआ. इसका नाम सुर्वचला था. सूर्य देव ने कहा कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे, क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी. इस प्रकार हनुमान जी का सूर्य पुत्री सुवर्चला से विवाह हुआ और उन्होंने सूर्य देव से वो विद्याएँ प्राप्त की.

हनुमान जी अपनी शक्ति के साथ यहाँ विराजते हैं –

तेलंगाना के खम्मम जिले में हनुमान जी और उनकी पत्नी सुवर्चला की पूजा होती है. यहां पर हनुमान-सुवर्चला का पुराना मंदिर सालों से लोगों का आकर्षण का केंद्र है. यहाँ ज्येष्ठ शुद्ध दशमी को हनुमान जी का विवाहोत्सव मनाया जाता है. हनुमान जी की तीन पत्नियों का भी वर्णन मिलता है. हनुमान जी की पहली पत्नी सुवर्चला थीं, दूसरी पत्नी वरुण देव की पुत्री अनंगकुसुमा थीं और तीसरी पत्नी रावण की पुत्री सत्यवती थीं. ये कथाएं कोई इतिहास नहीं है, यह हनुमान तन्त्र के विकास की कथाएं हैं. हनुमान जी तन्त्र के बड़े सिद्ध देवताओं में शरीक हैं. चिंरजीवी होने के कारण हनुमान जी, भगवान परशुराम जी और मार्कण्डेय ऋषि की तरह ही सनातन धर्म में ईश्वरतुल्य गुरु मान्य हैं. ये तीनों गुरु तन्त्र के प्रवक्ता हैं. कलियुग में भगवान ने तन्त्र को सिद्धि का हेतु कहा है.