देवी दुर्गा की अनुकम्पा से देव्यथर्वशीर्ष की यह शात्रसम्मत व्याख्या चैत्र नवमी तिथि पुष्य नक्षत्र में सम्पन्न हुई है. जिस समय इस उपनिषद का समापन हुआ उस समय सिंह लग्न उदित था, सूर्य नवम भाव में उच्च का होकर पंचमेश बृहस्पति के साथ युत था और चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में स्वगृही था. नवांश गुरु का उदित था. यह ग्रन्थ शक्ति की अनुकम्पा से कुल 18 दिन में पूर्ण हुआ है. इन 18 दिनों में दो नवरात्रियाँ सम्मिलित हैं जिसमें इस श्रुति का भाष्य सम्पन्न किया गया था. श्री देव्यथर्वशीर्ष उपनिषद सनातन वैदिक धर्म के पांच सम्प्रदायों में सबसे महत्वपूर्ण शाक्त सम्प्रदाय का शीर्ष ग्रन्थ है। यह देव्याथर्वशीर्ष उपनिषद शौनक शाखा से सम्बन्धित श्रुति है। पराम्बा दुर्गा ब्रह्मस्वरूप हैं, उपनिषद में यह स्थापित किया गया है, साथ ही इस उपनिषद में पराम्बा के विद्या मन्त्रों और बीज मन्त्रों का भी वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ में श्रीविद्या का नवार्ण मन्त्र से भी एकत्व स्थापित किया गया है। देव्यथर्वशीर्ष की यह प्रथम हिंदी व्याख्या है, इससे पूर्व देव्यथर्वशीर्ष का भाष्य या व्याख्या नहीं हुई है।
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