हिंदू पंचांग की तेरहवीं तिथि को त्रयोदशी कहते हैं. यह तिथि मास में दो बार आती है. चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी का रवि प्रदोष व्रत 21 अप्रैल को रखा जाएगा. यह तिथि रविवार को पड़ने से अत्यंत शुभ हो गई है. सूर्य के शिव ही देवता हैं इसलिए जन्म कुंडली में नीच सूर्य हो, सूर्य दु:स्थान में हो और सूर्य की खराब महादशा हो तो इस रवि प्रदोष में शिव पूजन आवश्य करना चाहिए. त्रयोदशी तिथि शैव धर्म की सबसे महत्वपूर्ण तिथि है और शिव को यह तिथि बहुत प्रिय है. यह तिथि महादेव को समर्पित है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा आराधना की जाती है. शैव मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से मनोकामना पूर्ण होती और शिव का सदैव आशीर्वाद मिलता है. प्रदोष काल में शिव पूजन की अपनी महत्ता है. इस समय पूजन से धन धन्य की वृद्धि और पुष्टि की प्राप्ति होती है. शिव की प्रशस्त तिथि है त्रयोदशी इसलिए इस तिथि में प्रदोष काल में पूजन सर्वश्रेष्ठ है.
मुहूर्त –
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 20 अप्रैल रात्रि 11 बजकर 5 मिनट पर शुरू होगी, इसका समापन अगले दिन 22 अप्रैल की रात्रि 2 बजकर 36 मिनट में पर होगा. शैव परम्परा में शिव की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत 21 अप्रैल को रखा जाएगा. पूजन के लिए सूर्यास्त के बाद का समय प्रशस्त रहता है जब प्रदोष काल प्रारम्भ होता है. प्रदोषकाल सायं 06:51- 09:02 तक रहेगा. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, अमृत सिद्धि योग रहेगा.

