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गणेश जी के जन्म और हाथी वाले सिर की कहानी बहुत रोचक है और आधुनिक विज्ञान की वर्तमान खोज स्टेम सेल्स से मनुष्य के निमार्ण की सम्भावना को पुष्ट करती है. बाईबिल में भी ईव EVE के जन्म की ऐसी ही एक कथा है. गणेश की कथा महज कल्पना नहीं है, ऋषियों को यह ज्ञात था कि देह की कोशिकाओं में नये जीवन को जन्म देने की पूर्ण क्षमता है. शिवपुराण के मुताबिक देवी पार्वती एक दिन स्नान कर रही थीं और हल्दी का उबटन लगा रही थी. तभी स्नान कक्ष में शिव आ पहुंचे. यह देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ और बड़ा अटपटा लगा. उनकी सखियों ने कहा कि ऐसा इसलिए है कि आपके कोई गण नहीं है, सभी गण शिव की आज्ञा मानते हैं. आपको भी अपनी सेवा और रक्षा के लिए एक गण बनाना चाहिए. उन्होंने सोचा कि वह घर में अकेली रहती हैं, जब जिसका मन करता है, उनके कक्ष में आ जाता है. अब मुझे कोई ऐसा चाहिए, जो मेरे साथ रहे और सिर्फ मेरी ही आज्ञा माने तथा किसी को मेरी अनुमति के बगैर अंदर न आने दें. यह सोचते-सोचते पार्टी का उबटन सूख गया था. उसी उबटन को उतरकर उन्होंने एक बालक बनाया और उसमें प्राण डाल दिए. उस बालक को माता पार्वती ने कहा, “तुम मेरे पुत्र हो और तुम्हें हमेशा मेरी आज्ञा को मानना. उसको उन्होंने अपना गण नियुक्त कर दिया और उसका नाम गणेश रखा. एकदिन उन्होंने कहा, “देखो पुत्र, अब मैं स्नान के लिए अंदर जा रही हूं. तुम यह ख्याल रखना कि घर के अंदर कोई भी न आ पाए.” उसी समय शिव आ गये. गणेश दरवाजे पर दंड लेकर खड़े थे. उन्होंने शिव को अंदर जाने से रोका. शिव ने गणों को आदेश दिया कि इसको दरवाजे से हटायें. सभी शिव गणों से गणेश का युद्ध हुआ और सभी को उन्होंने मार कर भगा दिया. तत्पश्चात देवताओं से भी युद्ध हुआ और उन्हें भी हारना पड़ा. युद्ध के अंत में शिव ने त्रिशूल से गणेश का शिर काट दिया.

गणेश का सिर कट जाने पर पार्वती ने अनेक शक्तियों को प्रकट किया जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया. अंत में सभी देवताओं ने पार्वती की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कहा कि यदि मेरा पुत्र पुन: जीवित हो जाय तो यह संहार रुक सकता है. ऐसे में शिव ने देवताओं से कहा कि जो जीव पहले दिख जाये उसका सिर ले आओ. सभी देवताओं ने उद्योग किया और हाथी का सिर काट कर ले आये. अश्विन कुमारों ने गणेश के सिर पर हाथी का सिर जोड़ दिया और शिव ने पुन: प्राण स्थापित कर दिया. इस तरह गणेश नये रूप में प्रकट हुए और उन्हें शिव-पार्वती के गणों में सबसे प्रमुख गण माना गया तथा शिव-पार्वती से उन्हें देवताओं प्रथम पूज्य का आशीर्वाद प्राप्त हुआ.

वैज्ञानिकों ने स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके सिंथेटिक मानव भ्रूण बनाया है, जो विज्ञान की एक अभूतपूर्व प्रगति है. यह अंडे या शुक्राणु की आवश्यकता को दरकिनार कर देता है अर्थात पूर्ण रूप से इस विज्ञान के विकास के बाद शुक्राणु और अंडे की आवश्यकता ही नहीं रहेगी. वैज्ञानिकों ने शुक्राणु, अंडे या गर्भ का उपयोग किए बिना एक ऐसी इकाई विकसित की है जो प्रारंभिक मानव भ्रूण से मिलती जुलती है. यह विकास अपने प्रारम्भिक चरण में हैं लेकिन इस पूर्ण विकास जल्द होने की सम्भावना है.

जीव विज्ञान के अनुसार स्टेम कोशिकाएँ ऐसी कोशिकाएँ हैं जो कई अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं में विकसित हो सकती हैं . स्टेम कोशिका या मूल कोशिका Stem Cell ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है. इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है. वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी छतिग्रस्त कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है. अधिकांशत: स्टेम सेल कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती है. भ्रूण विकास के दौरान डिम्ब वह एक कोशिका है, जो पूरे जीव को बनाने की पूर्ण क्षमता रखती है. ये कोशिकाएं कई बार विभाजित होकर ऐसी कोशिकाएं बनातीं हैं, जो पूर्ण सक्षम होतीं हैं अर्थात विभाजित होने पर प्रत्येक कोशिका पूरा जीव बना सकती है।