Spread the love

जून, 2020 में जब देश कोरोना की त्रासदी से गुजर रहा था. जिस समय दुनिया भर केआधुनिक विज्ञान में विकसित बड़े देशो की सरकारें और चिकित्सा विशेषज्ञ कोरोना से निपटने के लिए जूझ रहे थे. उसी समय गोदी मीडिया में इस समयअग्रणी “इंडिया टुडे” में पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण का इंटरव्यू आया, जिसका शीर्षक था- ‘‘क्लिनिकल ट्रायल के अंतिम चरण में हैं कोरोना की दवा’. इस प्रायोजित इंटरव्यू में बालकृष्ण ने मेरठ के दो अस्पतालों के कई डॉक्टरों और दूसरे कर्मचारियों का पतंजलि की दवाई से कोरोना ठीक होने का दावा किया था. बालकृष्ण का दावा गलत था. बालकृष्ण ने यह दावा भी किया- ‘‘हम सिर्फ इम्यूनिटी बूस्टर या इम्यूनोमॉड्यूलेटरी की ही बात नहीं कर रहे हैं. हमारी औषधियां मनुष्य की स्वस्थ कोशिकाओं में कोरोना वायरस के प्रवेश को भी रोकती है. उसकी संक्रमकता वायरस के खुद के रेप्लिकेशन को भी धीमा कर सकती है.’’

कोरोनिल की पहली लॉन्चिंग 23 जून, 2020 को हुई . इस समय तक भारत के पीएम नरेंद्र मोदी कोरोना भगाने के लिए भारत की जनता से थाली बजवा चुके थे और दीया भी जलवा चुके थे. यह मार्च 2020 की बात है यदि आपको ठीक से याद हो. इस ओझैती के विफल होने के बाद कोरोनिल लांच करवाया गया. यह मोदी के “संकट में बड़ा लाभ कमाने का अवसर” के रूप में देखा गया. भारत के ज्यादातर टीवी चैनलों और अखबारों ने हिंदुत्व द्वारा ‘कोरोना की दवाई’ बनने की घोषणा कर दी. टीवी चैनलों को सबसे ज्यादा विज्ञापन देने वाले रामदेव का हर टीवी चैनल पर इंटरव्यू चला और भक्तों ने सोशल मीडिया पर छाती पिटनी शुरू कर दी. लॉन्च के दौरान रामदेव ने कहा- ‘‘दिस इज नॉट ओनली कंट्रोल, क्योर है उसका (कोरोना का). इससे सात दिनों के अंदर 100 प्रतिशत तो तीन दिन में 69 प्रतिशत रिकवरी रेट है. वहीं जीरो प्रतिशत डेथ रेट है.’’

कोरोनिल से कोरोना के ठीक होने के दावे पर विवाद हो गया और देश के बड़े डाक्टरों इसके खिलाफ बोलना शुरू कर दिया. रामदेव के दावे के सात दिन बाद 30 जून, 2020 को बालकृष्ण ने रामदेव के बयान से पलटते हुए कहा, ‘‘हमने दवाई के अंदर कहा ही नहीं है कि हम कोरोना को कंट्रोल करते हैं, क्योर करते हैं.’’ दवाई की लॉन्चिंग के दौरान दावा किया था कि कोरोनिल पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (निम्स) जयपुर ने मिलकर बनाई है. इसके लिए रामदेव ने मंच पर मौजूद निम्स के निदेशक डॉ. बीएस तोमर को धन्यवाद कहा. जब इस पर भी विवाद बढ़ा तो तोमर ने कहा, ‘‘अस्पताल में कोरोनिल दवा का ट्रायल नहीं हुआ, केवल इम्युनिटी बढ़ाने के काम आने वाले उत्पाद मरीजों को दिए गए थे.’’

23 जून, 2020 को जिस कोरोनिल को रामदेव दुनिया की पहली कोरोना की दवाई बता रहे थे. उसे आयुष विभाग ने सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर का लाइसेंस दिया था. रामदेव मंच से गलत दावा कर रहा था और प्रोपगेंडा द्वारा हिन्दू जनता को बरगला रहा था. आयुष विभाग ने पतंजलि को नोटिस भेजा और पूछा, ‘‘आपने किस आधार पर कोरोना की दवा बनाने का दावा किया है. जबकि विभाग की ओर से इम्युनिटी बूस्टर का लाइसेंस दिया गया था.’’ रामदेव को इस नोटिस का जवाब सात दिनों में देने के लिए कहा गया. नोटिस भेजने वाले आयुष विभाग के तत्कालीन आयुर्वेद ड्रग्स लाइसेंस अथॉरिटी के प्रभारी डॉ. वाईएस रावत के अनुसार ‘‘जब लाइसेंस के लिए पतंजलि की तरफ से आवेदन आया तो उसमें कोरोना का कोई जिक्र नहीं था. हमसे भी गलती हुई कि हमने ‘कोरोनिल’ शब्द पर ध्यान नहीं दिया. पतंजलि ने दवाई का जो फार्मूला हमें दिया था. उसके आधार पर हमने इम्युनिटी बूस्टर का लाइसेंस दिया. लेकिन वे जब इसे कोरोना की दवाई के रूप में प्रचार करने लगे तो हमने मीडिया को स्पष्ट किया कि यह इम्युनिटी बूस्टर है.’’ यह इम्युनिटी बूस्टर था भी या नहीं इसमें संदेह है. इन तमाम विवादों और सवालों के बीच रामदेव कोरोना के व्यापक प्रकोप के दौरान मर रही बेचारी आम जनता को कोरोनिल बेचता रहा और करोड़ों कमाता रहा. गोदी मीडिया रामदेव से विज्ञापन लेता रहा और इसे रामबाण, संजीवनी, प्राचीन ज्ञान से प्रकट महान औषधि आदि बताता रहा. हिन्दू जनता इसे राष्ट्रवाद के नाम पर खरीदती रही. रामदेव इंटरव्यू देता रहा और बड़े पैमाने पर लोग कोरोनिल का इस्तेमाल करते रहे. इस दौरान देश के चौकीदार नरेंद्र मोदी खामोश रहे जैसा कि वह सदैव जुर्म, बलात्कार, दंगे और मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर मौन रह कर उसे होने देते हैं.

हरिद्वार में पहली लॉन्चिंग के करीब एक साल बाद 19 फरवरी, 2021 को एक बार फिर से कोरोनिल को राजधानी दिल्ली में लॉन्च किया गया. इस बार इसको खुद भाजपा ही लांच कर रही थी. इसे काफी तामझाम के साथ किया गया तथा मीडिया और भाजपा का आईटी सेल ने इसका प्राचीन हिन्दू चिकित्सा की उपलब्धि बताकर जबर्दस्त प्रचार किया. दुनिया में Covid का अब तक कोई दवा या इंजेक्शन नहीं आया था. यह अप्रत्यक्ष रूप में नरेंद्र मोदी की भी उपलब्धि बताई जा रही थी. इस लॉन्चिंग में भारत सरकार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और भू-तल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी मौजूद थे. इससे देश के हिन्दुओं को यह विश्वास हो गया कि मोदी जी और उनके मंत्री जो करते हैं, वह ठीक ही करते हैं. यह जनता के हित में ही रहता है, भले ही वे जनता को जहर ही क्यों न पिला रहे हों. रामदेव ने इसे ऐतिहासिक दिन बताया था जो धर्म प्रधान जनता के साथ एक बहुत बड़ा धोका था. आज यह पुन: दुनिया के सामने आया और भारत की उच्च न्यायालय ने भरे कोर्ट में रामदेव को फ्राड और ठग करार दिया है.

जनता को क्या यह जानने का हक़ नहीं है कि उन्हें घटिया इम्युनिटी बूस्टर को कोरोना की दवा बता कर 600 रूपये में क्यों बेचा गया? in 4 month Ramdev sold 25 lakh kit worth 250 crore .

नोट- मीडिया की रिपोर्ट पर आधारित